2122-2122-2122
वक्त से दो चार हो जाने लगे हैं।।
मन की मनमानी को ठुकराने लगे हैं।।
अब जो अरमानों को टहलाने-लगे* हैं।।(बहाने बाजी करना)
जीस्त की सच्चाई अपनाने लगे हैं।।
उम्र की दस्तक़ जो है चहरे प मेरे।
श्वेत होकर केश लहराने लगे हैं।।
बचपना अब रूठता सा जा रहा है ।
पौढ़पन* अब अक्श दरसाने लगे हैं।।
मंजिलों में जिनके परचम दिख रहे उन।
सब के तर* पे शाल्य* मनमाने लगे हैं।।( निचला हिस्सा, काटें)
आंवा'* जब तपकर किये स्वभाव मटका।(कुम्हार की भट्ठी)
हर तपिश से ..शुक्रिया पाने लगे हैं।।
झूठ के आगे बढा जब सच का चहरा।
कुछ सियासी लोग गुरर्राने लगे हैं।।
लीक से हटकर जरा चलना जो चाहा।
बे-हया हूँ ..... बज्म से तानें लगे हैं।।
सच जरा सा आगे क्या बढ़ने लगा सब।
मरकजों के पैर ....थरर्राने लगे हैं।
अमोद बिंदौरी / मौलिक , अप्रकाशित
Comment
आ ब्रजेश भाई साहब ...हृदय से आप का आभार
आ समर दादा प्रणाम
प्रोत्साहन और मर्गदर्शन के लिए आभार ...
जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
शिल्प और व्याकरण पर अभी और अभ्यास की ज़रूरत है,ध्यान दें ।
वाह खूब ग़ज़ल हुई अमोद जी बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online