22-22-22-2
मन भी कितना आतुर है।।
ज्यूँ सबकुछ जीवन भर है।।
पशुओं कि यह हालत भी।
इंसानों से बेहतर है।।
लोक समीक्षा इतनी ही।
जितना चिड़िया का पर है।।
मेरा मेरा मुझको ही।
छाया है सब छप्पर है।।
कितना तुम अब भागोगे ।
तीन-कदम* पर ही घर है।।(बचपन जवानी बुढ़ापा)
खूब बड़े बन जाओ क्या कर।
दो गज का ही बिस्तर है।।
मत कह तन्हा तू हमको।
है मालिक उसका दर है।।
शिल्प नज़र लिख लू कैसे ।
भाव भरा लघु सागर है।।
साया वालिद ऐसा ज्यों ।
जंग-ए- मैदां बख्तर* है।।(सुरक्षा घेरा)
उनका कहना वाज़िब यूँ ।
उनका साया हमपर है।।
बच कर रहना यारों तुम।
उल्फ़त भी इक खंज़र है।।
आमोद बिंदौरी /मौलिक या प्रकाशित
Comment
आद0 आमोद श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन। बढ़िया सृजन पर बधाई स्वीकार कीजिये। सादर
आ. भाई आमोद जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'खूब बड़े बन जाओ क्या कर'
ये मिसरा बह्र में नहीं है ।
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