22-22-22-22
मैं कुछ और कहाँ कहता हूँ।।
गैरों से लिपटा - अपना हूँ।।
वैमनष्यता न सर उठा पाए।
दुश्मन की तरहा रहता हूँ।।
दरपण भी छू सकता है क्या।
बस ये ऐसे ही - पूछा हूँ।
कलियाँ खुशबू बिखरायेंगी।
मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ।।
आमोद रखो, बिश्वास रखो।
पग पग जीवन में अच्छा हूँ।।
..अमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित
Comment
आद0 आमोद श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन। बढ़िया प्रयास है, बधाई स्वीकार कीजिये।
"ग़ज़ल की कक्षा" में जनाब अजय तिवारी साहिब का आलेख "मीर द्वारा इस्तेमाल की गई बहरैं" का अध्यन करें ।
वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि 22 को 112 ले सकते हैं,और इस बह्र में गेयता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है ।
कलियाँ खुशबू बिखरायेगी।
मैं समय का बहता दरया हूँ।।..(मुझे इसमें रब्त भी नही लगा और समय का' भी भ्रमित कर रहा था
आमोद लिये बिस्वास बढ़ो...इसमें द-लि.. क्या 2 होगा??
पग -पग जीवन में अच्छा हूँ।
आ समर दादा प्रणाम ..
दादा इन बहरों की एक जानकारी चाहिए थी ..क्या इन में मात्रा भार गिर सकता है ।
जैसे मूलतः ..22 को 112, या 211 में जोड़ कर पूरा होता है ।
मैं यहाँ भ्रमित हो गया
"मैं समय का' बहता दरिया हूँ " ये "समयक "
इसी तरह ... वैमन स्यता'न...
कृपया इस पर मर्गदर्शन दीजियेगा
जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'वैमनष्यता न सर उठा पाए।
दुश्मन की तरहा रहता हूँ'
ये शैर बह्र में नहीं,देखिये ।
'मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ'
ये मिसरा लय में नहीं है ।
'आमोद रखो, बिश्वास रखो'
ये मिसरा लय में नहीं है ।
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