आँखों मे उम्मीदों के चिराग रख गया कोई
फिर जलने का असबाब रख गया कोई
पकड़कर मेरा चोरी से देखना उसको
राज़-ए-दिल बेनकाब रख गया कोई
करके वादा सफर मे साथ देने का
हौसले बेहिसाब रख गया कोई
झुकाकर शर्म से अपनी पलकें
मेरे सवाल का जवाब रख गया कोई
मेरी नींदों से महरूम आँखों मे
जिंदगी के ख्वाब रख गया कोई
शरद
Added by शरद कुमार on October 16, 2012 at 3:29pm — No Comments
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