निकले धूप और कभी बादल हैं पिघलते रहें
मौसमों की फितरतों में है की बदलते रहे
कभी पके कभी फुटे लौंदे गए रौंदे गए
मस्त होके जिंदगी के सांचे में ढलते रहे
शिकवा नहीं जीवन के है उतार और चढाव से
तकदीर के जानों पे हम ख़ुशी ख़ुशी पलते रहे
मुश्किलों तो आएँगी हज़ारों राह में मगर
कारोबार-ए-जिंदगी के कारवां चलते रहे
आयें लाखों तूफां पर उम्मीदें बुझ सकें नहीं
हौसलों के साए में चराग ये जलते…
ContinueAdded by शरद कुमार on October 22, 2013 at 10:14pm — 11 Comments
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