रात की सरहदें,
चाँद का दबदबा,
जिनको करने फ़तह,
है सुबह चल पड़ी
नींद के सब किले,
बाँध लो तुम ज़रा,
ख़्वाब की ज़िन्दगी,
अब बहुत कम बची
सुबह और रात में,
जंग लो छिड़ गयी,
क़त्लो-ग़ारत हुई,
रात फिर छट गयी,
लाश तारों की उफ़!,
ओस बन बिछ गयी,
रौशनी, रौशनी,
हर तरफ चढ़ गयी
जीत का जश्न फिर,
खूब दिन भर चला,
आसमां रौंद कर,
देखो सूरज चला,
कितना मगरूर था,
हाय! कितना गुमां,…
Added by Karunik on December 30, 2015 at 11:30pm — 3 Comments
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