पूछे कौन गरीब को, धनिकों की जयकार .
धन के माथे पर मुकुट, और गले में हार ..
और गले में हार , लुटाती दुनिया मोती .
आवभगत हर बार, अगर धन हो तब होती .
'ठकुरेला' कविराय , बिना धन नाते छूछे .
धन की ही मनुहार,बिना धन जग कब पूछे .
जनता उसकी ही हुई , जिसके सिर पर ताज.
या फिर उसकी हो सकी ,जो हल करता काज ..
जो हल करता काज,समय असमय सुधि लेता.
सुनता मन की बात , जरूरत पर कुछ देता .
'ठकुरेला' कविराय…
ContinueAdded by Trilok Singh Thakurela on November 16, 2013 at 8:00pm — 16 Comments
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