स्तावित खुशियाँ
प्रस्तावित है कुछ खुशियाँ
कुछ सपनों का अनुबंध
दीवारों ने कब देखी है
नील गगन की क्यारी
सोच रही है तन्हाई
कब जायेगी लाचारी
हिम्मत के जब पाँव बढ़े
दानों का हुआ प्रबंध
अरमानों की किस्मत में
क्यों होता कहर जरूरी
समझोते की भठ्ठी में
करता है मौन मजूरी
स्वीकारा प्रतिक्षण ऋतू ने
परिवर्तन से सम्बन्ध
बजते बजते सरगम की
सब टूट…
Added by asha deshmukh on June 1, 2016 at 11:00am — 6 Comments
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