अना की कब्र पर जबसे, गुलों को बो चुके हैं हम,
हमें लगने लगा है, फिर से जिंदा हो चुके हैं हम।
उगेंगे कल नए पौधे, यकीं कुछ यूँ हुआ हमको,
ज़मीं नम हो गयी है, आज इतना रो चुके हैं हम।
उतारे कोई अब तो, इन रिवाजों के सलीबों को,
छिले कंधे लिए, सदियों से इनको ढो चुके हैं हम।
मेरे सपने अभी तक डर रहे हैं, सुर्ख रंगों से,
हथेली से लहू यूँ तो, कभी का धो चुके हैं हम।
बची है अब कहाँ, मुँह में जुबाँ औ ताब आँखों में,
बहुत पाने की चाहत में,…
Added by Arvind Kumar on February 3, 2014 at 12:30pm — 7 Comments
मैं सपने बेचता हूँ।
आज के, कल के,
और कभी कभी तो बरसों बाद के भी।
इन सपनों की ज़रुरत नहीं तुम्हें।
इनका अहसास मैंने दिलाया है,
तुम्हारे जेहन में घुसकर...
तुम्हारे डर को कुरेदकर।
मैं और मुझ जैसे सैकड़ों लोग,
झांकते हैं,
तुम्हारे गुसलखानों में,
तुम्हारी रसोई में,
तुम्हारे ख्वाबगाहों में।
मुझे पता है,
कितनी दफा ब्रश करते हो तुम,
कैसे रोता है तुम्हारा बच्चा गीली नैपी में, और
क्यूँ तुम्हारे चेहरे की चमक खो…
Added by Arvind Kumar on August 4, 2013 at 7:30am — 11 Comments
किसी भूली कहानी का, कोई किरदार दिखता है,
मेरा क़स्बा मुझे , अब सिर्फ इक बाज़ार दिखता है।
कि जैसे सर के बदले, आईनें हों सबके कन्धों पर,
मुझे हर शख्स मुझसा ही, यहाँ लाचार दिखता है।
यही इक मर्ज़ है उसका ,दवा भी बस यही उसकी,
शहर, चाहत में पैसे की, बहुत बीमार दिखता है।
बचेगी किस तरह मुझमें, किसी मंजिल की अब हसरत,
समंदर के सफ़र में, बस मुझे मंझधार दिखता है।
न कोई रब्त है, ना गम, न कुछ बाकी तमन्नाएँ,
ये शायर शय से सारी, इन दिनों…
Added by Arvind Kumar on July 8, 2013 at 4:30pm — 11 Comments
कुछ मुझी में प्यार मेरा, इस कदर आबाद है,
कैद में दुनिया है मेरी, दिल मेरा आज़ाद है।
पाँव थमते ही नहीं, अब मंजिलों पर भी मेरे,
ये मेरी आवारगी, शायद मेरी हमजाद है।
Added by Arvind Kumar on November 8, 2012 at 8:39pm — 7 Comments
ख़ुशी के कितने लमहे हैं, जीस्त जिनसे संवारी है,
मेरे गम का मगर ये पल, मेरे जीने पे भारी है.
कोई भी ख्वाब अब आता नहीं, जो दे सुकूं मुझको,
मुलाजिम हूँ, रातों पर मेरे, अब पहरेदारी है.
जलाए कितने ही घर, कितने ही दुश्मन मिटा डाले,
नहीं आती कोई भी चीख, ये कैसी खुमारी है.
हो कोई सामने, पर बढ़ना है सर काटकर मुझको,
जिसे ठहराते हो जायज, वो जीने की बीमारी है.
मेरी जेबें भरी हैं, खूँ सने सिक्कों से अब, लेकिन,
कोई…
Added by Arvind Kumar on January 23, 2012 at 3:22pm — No Comments
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