Added by Krishnasingh Pela on February 1, 2015 at 11:00pm — 17 Comments
मर्ज़ अपने हैं सभी कोई न बेगाना
मेरे घर का एक कोना है दवाखाना
इक नशा सा है मगर साकी न पैमाना
ज़ख़्म अपने पास हैं और दूर मैखाना
किस बीमारी का पता क्या है, वतन क्या है
पूछना कुछ हो तो मेरे घर पे आ जाना
आह भी है, ऊह भी है, शाम है ग़मगीन
शम्अ जलती दर्द की, मैं मस्त परवाना
कोई काँटा, कोई पत्थर, कोई ख़ंजर है
दर्ददाताओं से ही अपना है याराना
इक ग़ज़ल आयी ठिठुरती, कह गयी मुझसे
जम न जाना, जनवरी में ठंड है, माना ।…
Added by Krishnasingh Pela on January 20, 2015 at 10:30am — 19 Comments
सभी रास्ताें पर सिपाही खटे हैं
ताे फिर लाेग क्याें रास्ते से हटे हैं ।
सियासत अाै मज़हब की दीवारें देखाे
दीवाराें से ही लाेग गुमसुम सटे हैं ।
सरहद है सराें के लिए अाखरी हद
अकारण यहाँ पर कई सर कटे हैं…
ContinueAdded by Krishnasingh Pela on April 13, 2014 at 12:00pm — 27 Comments
ये ग़ज़ल नहीं है देश का बयान है,
डूबते जहाज की ये दास्तान है।
लुट रही है कहकहाें के बीच अाबरु,
धर्तीपुत्र अाज माैन, बेजुबान है।
गर्व था उन्हें कि बन गये जगतपिता,
गर्भ में ही मर चुका वाे संविधान है।
हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई,
हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है।
घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके,
बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है।
लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना…
ContinueAdded by Krishnasingh Pela on March 29, 2014 at 12:30am — 14 Comments
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