जहाँ फ़ैल रहा प्रकाश वहाँ, क्यों फैला रहे अंधेरा,
खुशियों को छीन लो ना उनसे, होने दो वहाँ सवेरा,
जालिम कहर तुम्हारी, बरसे जहाँ जहाँ पर ,
रहते थे शान्ति के पुजारी,बंजर है अब वहाँ पर,
कितनो के चमन उजाड़ दिए, कितनो का लूटोगे डेरा,
खुशियों को छीन लो ना उनसे, होने दो वहाँ सवेरा.
अन्दर तुम्हारे है क्या , लेते सदा सहारा,
खुद की जमीं बचा न सके तो, दूसरों का घर उजाड़ा,
कब तक बनोगे सांप तुम,नचाएगा तुम्हे संपेरा,
खुशियों…
Added by Dhananjay Pathak on March 4, 2011 at 12:00am — No Comments
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