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1222    1222    1222    1222

सुहाना सुब्ह मौसम है तुम्हें अब ग़म नहीं होता
खिली है धूप गुलशन में सवेरा कम नहीं होता

वो काली रात है तारी अँधेरा कम नहीं होता
ये कैसा वक़्त आया है सनम हमदम नहीं होता

परायापन बना हासिल कि रिश्तों दम नहीं होता
न प्यारा कोई है दुनिया कभी दुख कम नहीं होता

तुम्हारी आँख का पानी अभी क्यों सूखता जानाँ
हमे तो शर्म आती हैं पशेमाँ दम नहीं होता

तुम्हारे शह्र के हालात वो ग़मगीन क्यों है अब
मिटे दुख मुफ़लिसों के शाह को क्या दम नहीं होता

किसी को इस तरह रुसवा करो मत यार सुन, चेतन
बहुत कोशिश करे वो दर्द फिर भी कम नहीं होता

प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on September 22, 2023 at 2:38pm
वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत सृजन हुआ है, शेर दर शेर मुबारक कबूल करें सर
Comment by Shyam Narain Verma on September 15, 2023 at 5:31pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

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