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जिन्दगी कबो दुख के धुप ,

कबो सुख के छांव होके ला।

तड़प से भरल शहर,

कबो पहाड़ पर बसल गांव होके ला।

जिन्दगी एक सुलगत ईंधन बा

केहु पापी बा, केहू पावन बा।

जिन्दगी का हऽ? कहाँ तक बताई हम

हर कदम पर नया इम्तिहान होके ला।

कबो पलेला माइ के अँचरा मे,

कबो विधालयों मे चहकेला

कबो कालेज मे इतराला

एह तरी जिन्दगी धीरे-धीरे जवान होके ला।

फेर आफिस मे पिस के

गृहस्थी पर कुर्बान होके ला

जिन्दगी विधाता के दिहल

एक प्यारा सा तोहफा बा,

जउन बड़ा किस्मत से नसीब होके ला।

रुठ के दुर चल जाला कबो, अउर

कबो बहुत करीब होके ला।

अइसन हार विधाता दिहलन हमनी के

जे मे कुछ कांट , कुछ कली गुथल रहेला।

दुख के कांट होके, चाहे सुख के कली

एक धागा मे तरिका से संजोवल रहेला।

कबो महलन मे हँसेला ,अउर

कबो झोपड़ीयन मे रोवेला।

कबो मिलन के मधुमास होके ला,

कबो बिछोह के लंबा बनवास होके ला।

कबो जवानी के आफताब

कबो बुढ़ापा के मुरझाइल गुलाब होके ला।

जिन्दगी सुख के दिन

कबो दुख के रात होके ला

जहवाँ भी जाई रउरा

सदा रउरा साथ होके ला

सदा रउरा साथ होके ला............जिन्दगी।।।।।।।।।।।।।

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 6, 2010 at 6:32pm
bahut sundar,,,,darshnik kavita|
Comment by Raju on March 30, 2010 at 10:03pm
Thanks to all of you.
Comment by Team Admin on March 29, 2010 at 9:02am
bahut achhi kavita likha hai aapne raju jee.......
जिन्दगी कबो दुख के धुप ,त

कबो सुख के छांव होके ला।

तड़प से भरल शहर,त

कबो पहाड़ पर बसल गांव होके ला।
is kavita ka te line mujhe bahut pasand aaya....ye aapki pehli rachna hai aur pehli hi zordar hai......
aasha hai aapki rachna aage bhi humlog ke beech aatu rahegi......

aapka apna
TEAM ADMIN
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on March 28, 2010 at 10:46pm
bahut badhiay likhle bani raju jee......bahut shaandaar.......
जिन्दगी सुख के दिन

त कबो दुख के रात होके ला

जहवाँ भी जाई रउरा

सदा रउरा साथ होके ला

ee line humra bahut pasand aail...hum raua ke ehja etna badhiay rachna likhla khatir dhanyabaad de tani.....
aage bhi raur rachna aawat rahi aasha baa............

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 28, 2010 at 8:54pm
कबो पलेला माइ के अँचरा मे,

कबो विधालयों मे चहकेला ।

कबो कालेज मे इतराला

एह तरी जिन्दगी धीरे-धीरे जवान होके ला।

फेर आफिस मे पिस के

गृहस्थी पर कुर्बान होके ला ।


राजू भाई रौवा जिन्दगी के एतना खूबसूरती से परिभाषित कैले बानी उ तारीफ़ के लायक बा, इ कविता के एक एक गो लाइन ह्रदय के छू लेवे वाला बा , बहुत ही खुबसूरत रचना बा, ऐसही लिखत रही बहुत आगे रौवा जाइब इ हमार सुभकामना बा और विश्वाश बा की ऐसही आगे भी सुन्दर कृति हमनी के देखे के जरूर मिली, धन्यबाद
Comment by Admin on March 28, 2010 at 8:46pm
राजू जी, सबसे पहिले त हम राउर पहिला ब्लॉग इहा पोस्ट करे पर बधाई दिहल चाहब, रौवा आपन पहिला ब्लॉग मे ही गर्दा उड़ा दिहले बानी, बहुत बढ़िया रचना बा, अइसन कुल रचना बहुत कम ही पढे के मिलेला,खाश कर के राउर इ लाइन बहुत सुन्दर बन पडल बा -----

जिन्दगी एक सुलगत ईंधन बा

केहु पापी बा, त केहू पावन बा।

जिन्दगी का हऽ? कहाँ तक बताई हम

ई हर कदम पर नया इम्तिहान होके ला


रौवा जिन्दगी के बहुत ही सुन्दरता से बर्णन कैले बानी, राउर ऐसन रचना के हमनी के बड़ी सिद्दत से आगे भी इन्तजार रही I

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