For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बचपन की यादो का चिटठा- लक्ष्मण लडीवाला

रह रह कर बचपन  याद आता है मुझे 
क्यां अल्हड मस्ती थी मेरे गाँव में 
सब बह गया लगता है अब- 
शहर के इस सीमेंट कंक्रीट की छाव में 
खूब खेलते थे मस्ती से सब मिल-
गाँव के खेत में, पेड़ की छाँव में ।
 
यदा कदा बेबस ही बचपन याद आता है,
देखते थे रम्भाती गायों को  साँझ में,
नाचते मोरों के झुंडो को खेत में,
सुनते थें कोयल की कुहू कुहू,
सारी यादे हवा हो गयी अब- 
शाद बह गयी सब तनाव की नाँव में ।
 
याद आता है बरबस ही बचपन मेरा 
सोता था गोद में, माँ की छाँव में,
सुनता था कहानी दादी की प्यार से,
नानी खिलाती थी बड़े चाव से,
दादा पढ़ाते थे बड़े दुलार से,
कहाँ हवा हुए उन सबके अरमान, 
अब अहसास हुआ मुझे-
वह सब तो था केवल किताबी ज्ञान,
 
अब जब पीछे मुड देखता हूँ,
कोसों दूर छूट गया मेरा गाँव,
हवा के झोंकों में बह गयी नाँव,
सपना थे माँ-बाँप के अरमान,
किताबी था पाया जो ज्ञान,
पंख नहीं लग सकते थे-
बगैर व्यावहारिक ज्ञान के,
केवल पाए किताबी ज्ञान से ।
 
यदा कदा याद करबचपन की यादो को,
बरबस झकझोर जाती मझे,
मेरे कुचले हुए अरमानो को,
सुनता हूँ माँ की आहभरी-
उस परवाज को कोसती आवाज को,
जिसने काट दिये मेरे,
उड़कर छलांग लगते पंखो को । 
 
सोंचता हूँ अब बच्चे को,
सपने नहीं दिखाऊंगा ।
सपनो में उड़ान भरने के बजाय,
ठोस धरातल पर ही,
उसके पाँव जमाऊंगा ।
सुसंस्कारित कर उसको,
गुरुकुल की सिक्षा,वेदों का ज्ञान,
हलधर का भान करा,
भारत माँ की आत्मा बसी,
उन गाँवों  की सैर कराऊंगा ।
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,
कृष्णा साकेत 165,गंगोत्री नगर,
गोपालपुरा,जयपुर (राज।)-18   

 

Views: 367

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 17, 2012 at 6:27pm

मुझे लगरहा था की गलत समय पर रचना पोस्ट होने से माननीय सदस्य इस रचना को पढ़ नहीं पाए । रचना में अंकित             बचपन की यादो में ममत्व स्नेह भाव पसंद  करने हेतु हार्दिक आभार स्वीकारे आपका आदरणीया  राजेश कुमारी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 17, 2012 at 10:22am

हर व्यक्ति दिल से अपना संचित ज्ञान ,धन धान सब अपने बच्चों को देकर जाना चाहता है पर कभी नहीं चाहता की जिस कमी को उसने भुगता उसके बच्चे स्वप्न में भी वो महसूस करें ये ही तो माता पिता का एक निःस्वार्थ ,पावन ममत्व है अपनी संतान के लिए यही सब भाव आपकी इस रचना से झलक रहे हैं बचपन की यादें कभी दिल से दूर नहीं होती बहुत बढ़िया प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
19 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service