जिन्दा हूँ इसलिए की कुछ और पाप कटे ,
वर्ना ये जिंदगी से मौत ही भली।
मिल जाते हैं हर मोड़ पर दुआ सलाम वाले ,
खैर ख्वाहों की गिनती में रहती उंगलियाँ खाली।
हर कदम पे मेरे रोड़े बहुत मिले ,
काश उनको मैं पहचानता नहीं।
मैं भी जानता बहुत को इसी जिंदगी में ,
काश रोज रोजलोग बदलते नहीं।
जिन्दा हूँ इसलिए की सभी पाप कटे
फिर ये जिंदगी मुझे गवारा नहीं।
Comment
प्रयासरत रहें, भाईजी.
श्याम नारायण वर्मा जी को धन्यवाद
ओ बी ओ प्रबंधन को मेरी कविता स्वीकार करने को बहुत बहुत धन्यवाद
BAHOT KHOOB
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