For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ तुझे प्रणाम

  माँ तुझे प्रणाम

 

धरती सी सहनशील

हिमालय सी शालीन

जीवन का द्वार

स्नेह की बौछार

बस दुलार ही दुलार

ममता का साकार रूप

प्रभात की पहली धूप

प्रारब्ध के पुण्य का फल

पहली साँस महसूस कराने वाली

अंगुल पकड़ चलाने वाली

पहली शिक्षा देने वाली

सबसे पहले आंसू पोंछने वाली

आत्मविश्वास जगाने वाली

जो सब है मेरे पास

उसी का दिया है अहसास

मेरी ख़ुशी मे मुझसे ज्यादा ख़ुश

मेरे गम में मुझसे ज्यादा दुखी

हिम्मत और विश्वास दिलाने वाली

विचारों में सुगंध बसाने वाली  

अँधेरी राह में उजाला दिखाने वाली

नौ महीने मेरे लिए कष्टों को झेल कर

इस दुनिया में मुझे लाने वाली

माँ तुझे प्रणाम , माँ तुझे प्रणाम

तेरी ममता का स्पर्श

है आज भी मुझमें समाया

तुझे पाने के बाद ही

मैंने सब कुछ पाया

 

विजयाश्री

१५ .०४ .२०१३  

 

(मौलिक और अप्रकाशित )

  

 

 

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 11, 2013 at 1:16pm

 माँ की जरूरत हर किसी को हर उम्र में होती है।                                                                                                      उसकी कमी बेटी को, हर पल महसूस होती है।                                                                                                              क्योंकि " माँ " बेटी की, सच्ची सहेली होती है॥

 सुन्दर रचना के लिए बधाई । 

Comment by vijayashree on June 13, 2013 at 1:22pm

सादर धन्यवाद्   डी.पी . माथुरजी एवं योगी सारस्वत जी  

Comment by D P Mathur on June 8, 2013 at 6:54pm

तुझे पाने के बाद ही मैने सब कुछ पाया ,
तुझ जैसा पावन रिश्ता दूसरा नही बन पाया,
प्यारी प्यारी भोली भाली आई को ,
इस प्रक्रति ने सबसे महान बनाया .......
इन लाइनों के साथ आपकी रचना का स्वागत,
भावुक रचना है। डी पी माथुर

Comment by Yogi Saraswat on April 17, 2013 at 11:38am

स्वागत ! बहुत खूब ! सुन्दर रचना

Comment by vijayashree on April 16, 2013 at 6:39pm

सादर धन्यवाद बृजेश जी

Comment by बृजेश नीरज on April 16, 2013 at 6:24pm

बहुत ही सुन्दर रचना! मेरी बधाई स्वीकारें।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 1:34pm

स्नेह की बौछार
बस दुलार ही दुलार
ममता का साकार रूप
प्रभात की पहली धूप .........वाह वाह क्या सुंदर रचना हुई है
सादर बधाई स्वीकार कीजिए आदरनेया

Comment by vijayashree on April 16, 2013 at 11:55am

सादर आभार Er. गणेश जी 'बागी'

Comment by vijayashree on April 16, 2013 at 11:53am

सादर आभार विजय निकोर जी

Comment by vijayashree on April 16, 2013 at 11:51am

सादर धन्यवाद् कुंती मुखर्जी जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । सर यह एक भाव…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service