For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज ज़रूरत है

अपने अंदर झाँकने की

आपसी द्वेष और क्लेश से

ऊपर उठने की

 

सामने पड़ी वस्तु पर तो

शायद हम पैर न रखतें हैं  

पर दूसरों की भावनाओं को

पैरों तले कुचलने में न झिझकते हैं

  

जात -पात वर्ण भेद के मानकों पर

इंसानों को बाँटने में लग गए हैं

एक दूसरे को नीचा दिखाने की हर

प्रतिस्पर्धा में बुरी तरह जुट गए हैं

 

पेड पत्थर कागज़ में तो

भगवान् का प्रतिरूप देख रहे हैं

 भगवान् द्वारा बनाए इंसान में

भगवान् नहीं देख पा रहे हैं

 

जिस भगवान् को भटक भटक कर

हम चारों दिशाओं में खोजते हैं

अपने दिलों में झांककर

 उनके वास को ,क्यूँ न तलाशते हैं

 

शायद हमारी मनःस्थिति

उस हिरन की सी हो रही है

जो अपनी नाभि छोड़कर

हर जगह कस्तूरी तलाश रही है

 

विजयाश्री

१९.१२.२०१२

 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 644

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijayashree on April 15, 2013 at 7:28pm

विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी

 

सादर 

 

//सामने पड़ी वस्तु पर तो
शायद हम पैर न रखतें हैं//.............मेरा तात्पर्य सांसारिक वस्तुओं से था

 

".....नहीं झिझकते हैं।"

 

".......और जुटे हैं "     बेहतर प्रतीत हो रहें हैं

 

आभार

 

Comment by vijayashree on April 15, 2013 at 7:05pm

 संदीप कुमार जी पटेल 

" कथ्य बिलकुल स्पष्ट "

.....कुछ तो समझ आया

आपका आभार

Comment by vijayashree on April 15, 2013 at 7:00pm

डॉ प्राची

 

कुछ विस्तार से समझाइये ...तो शायद अभिव्यक्ति बेहतर हो पाए .....

Comment by vijayashree on April 15, 2013 at 6:55pm

आभार

 

अशोक कुमार जी रकताले  , अरुण कुमारजी निगम , शालिनीजी कौशिक , प्रदीप कुमार सिंह जी कुशवाहा , केवल प्रसादजी , रस शिरोमणि पाठकजी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 2:57pm

आदरणीया विजयाश्री जी 

सामाजिक मानसिकता और आपसी व्यवहार को लेकर अतुकांत शैली में भाव सम्प्रेषण....

कई बार अतुकांत रचनाएँ सिर्फ कथानक सी प्रतीत होने लगती हैं...जैसे कोई गद्यांश मात्र हों ..सम्प्रेषण में बाक्यांशों को बहुत छोटा करके साथ ही तुकांतता व प्रवाह को ध्यान में रख कर इससे बचने का प्रयत्न होना चाहिए..

ये सभी अवयव लेखनी में सतत प्रयास के साथ साथ ही पाठन भी करते चलने पर स्वतः ही आने लगते हैं.

अभिव्यक्ति के सद्प्रयास के लिए बधाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 9:01am

यह संसार है ही मायाजाल.फिर कुछ इंसानी फितरत भी तो है.सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें आदरणीया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on April 14, 2013 at 11:44pm

सटीक विषय पर सारगर्भित रचना के लिए बधाई.......

Comment by shalini kaushik on April 14, 2013 at 8:58pm

 बहुत सही कहा है आपने ..भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू  गयी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 6:18pm

आदरणीया विजया श्री जी सादर प्रणाम 
बहुत ही सुन्दर और सारगर्वित विषय चयन किया है उसके लिए आपको बधाई 

आपने कविता में प्रथम चार पंक्तियों को छोड़ 

सभी में द्विपदियों की तरह तुक मिलाने का प्रयास किया है ऐसा गोचर हो रहा है 

किन्तु उसके चक्कर कविता का प्रवाह कथ्य के मामले में कुछ कम हो गया है 

इस प्रकार की रचना में अक्सर 

कलम चलती नहीं बहती सी है 

तुकांत से इसे सजाया जा सकता है लेकिन फिर वो स्पष्ट होने चाहिए 

लगभग मेल खाते हुए से काम नहीं चलेगा 
जैसे 

सामने पड़ी वस्तु पर तो

शायद हम पैर न रखते हैं  

पर क्या दूसरों की

भावानाओं को

कुचलने में

हम झिझकते हैं 

कुछ इस तरह 

कथ्य बिलकुल स्पष्ट होना चाहिए 

ताकि पढ़ते हुए पाठक डूब जाए 

बंधा रहे अंत तक 

सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2013 at 5:20pm

शायद हमारी मनःस्थिति

उस हिरन की सी हो रही है

जो अपनी नाभि छोड़कर

हर जगह कस्तूरी तलाश रही है

आदरणीया विजय श्री जी 

सादर अभिवादन

मूल करण यही है..

बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
11 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service