For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  जीवनशैली 

उन्हीं रास्तों पर चलते चलते

ना जाने क्यूँ मन उदास हो गया

सोचने लगी दिखावों के चक्कर में

जीवन कितना एकाकी हो गया

संपन जीवनशैली के बावज़ूद

इसमें सूनापन भर गया है

 

मैंने ड्राईवर से कहा –

क्या आज कुछ नया दिखा सकते हो

जो मॉल या क्लबों जैसी मशीनी ना हो

जहाँ जिंदगी साँस ले सकती हो

जो अपने जहाँ जैसी लगती हो

 

ड्राईवर बोला –

मैडम है एक जगह ऐसी

पर वो नहीं है आपके स्टैण्डर्ड जैसी

वहां हम जैसे छोटे लोग ही जाते हैं

और अपनी दिनभर की थकन मिटाते हैं

मैंने कहा –बताओ तो सही

छोटा बड़ा होता कुछ नहीं

वो बोला – गाँव में लगा है ‘मेला’

‘मेला’ सुनते ही मैं खो सी गई

फ़िरकी-गुब्बारे-झूले , खील-बताशे-लई

 

मुझे खोया पाकर ड्राईवर बोला

मैडम मैं तो यूँ ही मुहँ था खोला

मेला भी कोई देखने की चीज़ है इस ज़माने में

मैं बोली ऐसा ही तो कुछ देखना है

मुझे इस उदास आलम में 

 

ड्राईवर ने गाड़ी आगे बढाई

और मेले के सामने जा लगाई

वहां पहुँच कर लगा जैसे बहुत दिन बाद

अपनी सी एक जगह मैं आज आ गई  

मेरी उदासी मुझे छोड़ जाने कहाँ भाग गई

 

वो आम आदमी की जगह थी

वहां लोगों की अच्छी खासी तादाद थी

पर कोई अव्यवस्था या धक्कामुक्की नहीं थी

हर और खुशियाँ ही खुशियाँ नज़र आ रही थी

किसी के चेहरे पर भी गमी नहीं झलक रही थी

 

छोटे बड़े बच्चों का हाथ पकडे

परिवार के परिवार घूम रहे थे

और घूमते घूमते जीवन के हर रंगों का

लुत्फ़ वो अभिभूत हो उठा रहे थे

और मुझे जिंदगी का जीवंत उदाहरण दिखा रहे थे

 

मैं भी गन से गुब्बारे फोड़ती हुई

बॉल से गिलास गिरते हुई

इन खेलों का मज़ा लेती हुई

ना जाने कब रोज़मर्रा के

तनाव से मुक्त हो गई

 

मैं सोचने लगी क्यूँ हम दिखावों के चक्कर में

सरल ज़िन्दगी को इतना ग़मगीन बना लेते हैं

और जीवन के हसीं पलों को जीना भूल जाते हैं

इन दिखावों से उपर उठकर अपनी ज़मीं से जुड़कर

देखिये तो सही  आपसभी भी तरोताज़ा हो जायेंगे

अपने कदम बढ़ाओ तो सही , कदम बढ़ाओ तो सही

 

 

विजयाश्री

२२.०१.२०१३

      

( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijayashree on April 16, 2013 at 11:42am

विजय निकोर जी

सादर आभार

Comment by vijayashree on April 16, 2013 at 11:41am

अरुण कुमार निगम जी  

आभार

Comment by vijayashree on April 16, 2013 at 11:40am

वंदना तिवारी जी

सादर धन्यवाद्

 

Comment by vijayashree on April 16, 2013 at 11:39am

अशोक कुमार रकताले जी

सादर आभार

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 14, 2013 at 12:59pm

आदरणीया सच है सजावटी वृक्ष सुन्दरता जरुर बिखेर सकते हैं छाँह नहीं दे सकते. उसका आनंद तो अमराई में ही मिलेगा. सुन्दर रचना. बधाई स्वीकारें.

Comment by Vindu Babu on April 14, 2013 at 10:51am
आदरणीया विजयश्री जी बिल्कुल सटीक अभिव्यक्ति की है आपने। वास्तव मे आधुनिकता/पाश्चात्य सभ्यता का भूत कईबार हमें हमारी छोटी छोटी पर निश्छल खुशियों से दूर कर देता है।
बहुत सुन्दर
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on April 14, 2013 at 9:56am

हम सजा बैठे हैं नकली फूल से गुलदान को

ताजगी क्या चीज है ,जंगल में आ के देखिये |

धूल जहरीला धुँआ छल मुख मुखौटे शोरगुल

पत्थरों के  शहर में  हँस के  हँसा के देखिये |

आदरेया, अनुभूतियों को सुंदर शब्दों में व्यक्त करने हेतु बधाइयाँ .........

Comment by vijay nikore on April 14, 2013 at 4:27am

विजयाश्री जी:

 

सरल जीवन प्रति भावनाओं का चित्रण अच्छा किया है। शिल्प के विषय में

मित्रों ने सुझाव दे ही दिए हैं।

 

लिखते रहिए।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijayashree on April 14, 2013 at 12:56am

Sharadindu Mukerji ji

 

आभार

 

विजयाश्री

Comment by vijayashree on April 14, 2013 at 12:52am

केवल प्रसाद जी

 

रचना संज्ञान के लिए आभार

 

विजयाश्री

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service