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मेरी खुशी के संग खुल के खिलखिला जाना तेरा
ज़िंदगी मेरी नक्काशी तेरी और नज़राना तेरा
हो गई जो गलतियाँ या की कभी बदमाशियाँ
धीरे से चपत संग प्यार से समझाना तेरा
अब तू ही बता कैसे जियूं तेरे बगैर तेरे बगैर

चाँदनी के रंग सी याद है फितरत तेरी
देखते ही मुस्कुराना शायद थी आदत तेरी
शख्शियत सीने में रख कर याद फरमाता हूँ तुझे
प्लेट टूटी मुझसे थी पर भरना हरजाना तेरा
अब तू ही बता कैसे जियूं तेरे बगैर तेरे बगैर

हाजिरी तेरी सलामत अब भी है दराज़ में
कौन कहता है मुहब्बत फबती बस किताब में
तितलियों के पंख सी साँसे मेरी हसरत की थीं
पर आज भी है याद मुझको आँख चमकाना तेरा
अब तू ही बता कैसे जियूं तेरे बगैर तेरे बगैर

काबिलियत की गोलियां जो दी थीं तूने कूट के
बरसों से रोता ही रहा हूँ याद में मैं फूट के
घर कर गए हैं प्यार के तेरे सिखाए मायने
जख्मों को भी याद है मरहम लगा जाना तेरा
अब तू ही बता कैसे जियूं तेरे बगैर तेरे बगैर


मौलिक व अप्रकाशित
राणा रुद्र प्रताप सिंह 'युवा हिंद'

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Comment by राणा रुद्र प्रताप सिंह on March 18, 2014 at 1:19am
धन्यवाद श्रीमान @ जितेंद्र 'गीत' साहब
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 17, 2014 at 11:33pm

बेहद सुंदर भावपूर्ण रचना, बधाई आपको आदरणीय राणा साहब

Comment by राणा रुद्र प्रताप सिंह on March 16, 2014 at 2:23am

शुक्रगुजार हैं आपके राजेश कुमारी जी

Comment by राणा रुद्र प्रताप सिंह on March 16, 2014 at 2:22am

आदरणीय भंडारी साहब !!

शाबाशी ही तो खुराक है हमारी...उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 14, 2014 at 10:04pm

आदरणीय राणा भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये बहुत बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2014 at 10:01pm

बहुत सुन्दर ,बहुत खूब ...दिल छू गई आपकी रचना बहुत- बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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