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आदमी एक दो मुहां साँप है

आदमी....
कभी बाघ बन दहाड़ता है
कभी कुत्ता बन लड़ता है
कभी गिद्ध बन मांस ग्रहण करता है
तो कभी
गीदर बन भाग खड़ा होता है
कभी गिरगिट की तरह रंग बदलता है

आदमी.....
कभी धर्म के लिए स्वं मरता है
कभी दूसरों को मारता है / काटता है

आदमी ......
कभी देश बाटता है
कभी जाती बाटता है
कभी भाषा बाटता है
तो कभी एकता का पाठ पढ़ाता है

आदमी ....
कभी कंजूस बन पैसे के लिए मरता है
कभी दानी बन पैसे लुटाता है
कभी स्नेह करता है
तो कभी नफरत की आग बरसाता है

आदमी ....
कभी नारी को पूजता है
कभी नारी को जलाता है
कभी अपने बच्चे की बलि देता है
तो कभी बीबीयो को बदलता है

आदमी .....
कभी चोर बनता है
कभी साधू बनता है
कभी देशभक्ति की चादर ओढ़ता है
तो कभी देशद्रोह की तलवार भांजता है

मैं
आदमी हो कर भी
आदमी को नहीं समझ सका ....

सच कहू ... दोस्त
आदमी एक दो मुहां साँप है

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 10, 2010 at 11:04pm
आदमी ......
कभी देश बाटता है
कभी जाती बाटता है
कभी भाषा बाटता है
तो कभी एकता का पाठ पढ़ाता है

Aap ne aadmi namak jantu ki vivechna bahut sahi dhang sey kiyaa hai, thanks
Comment by Rash Bihari Ravi on June 9, 2010 at 6:41pm
aapki kavita utam nahi sabotan sandar jandar manmohak manbhawan jo bhi kahte hain kam lagta hain ,
Comment by Rash Bihari Ravi on June 9, 2010 at 6:39pm
bahut bahut dhanyabad babn ji avam admin ji
Comment by Admin on June 9, 2010 at 5:38pm
आदरणीय रवि कुमार "गुरु" जी आपने जिन दो पक्तियों का जिक्र किया है, आपकी बातो को अबिलम्ब दूरभाष द्वारा लेखक तक पंहुचा दिया गया है, और उन्होने कहा है की उनका मकसद किसी के भावना को आहत करना नहीं है और वो शीघ्र ही अपने पोस्ट को एडिट कर लेंगे, धन्यबाद,
Comment by Admin on June 9, 2010 at 4:57pm
बबन भाई बहुत सुंदर रचना दिये है, एकदम सही कहा है आपने आदमी नाम का जीव वास्तव मे बहुत ही विचित्र जीव है, जिसको समझ पाना बहुत ही मुस्किल है, आदमी तो एक होता है पर उसका रूप अनेक होता है, आपने बहुत ही अनोखे अंदाज मे आदमी रुपी जीव की विवेचना की है,
मुझे एक सुनी सुनाई छोटी सी कहानी याद आ रही है की एक चुड़ैल कब्रिस्तान मे अपनी छोटी सी बच्ची को पिट रही थी और जोर जोर से बोल रही थी की कितनी बार तुमको मना किया है की शाम ढले कब्रिस्तान से बाहर न जाया करो उधर आदमी लोग रहते है कही कुछ उंच नीच हो गया तो मै तुम्हारे पापा को क्या मुह दिखाउंगी,
बहुत बहुत धन्यबाद इस रचना के लिये,

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