For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ह्रदय की कोमलता मत खो देना.

जग की कटुता देख, ह्रदय की कोमलता मत खो देना.
मधुमास सुबास सुमन तन की, हर इक सांसों में भर देना.
तेरे होठों की लाली से, उषा का अवतरण हुआ.
तेरी जुल्फों की रंगत से, ज्योति का अपहरण हुआ.
अपने खंजन- नयन में रम्भे, अश्रु कभी मत भर लेना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों में भर देना.
पाता है रवि रौनक तुमसे, चाँद- सितारे शीतलता.
पवन सुगंध- हिरण चंचलता, रसिक - नयन को मादकता.
जग को मिलता प्राण तुम्हीं से, तुम्हे जगत से क्या लेना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों से भर देना.
तेरी प्रेरणा से ही हमने, कर में कलम उठाया है.
तेरा चुम्बन तम में लौ बन, मंजिल- मार्ग दिखाया है.
तुम्हीं प्रेयसी- तुम्हीं ख़ुशी हो, हमें अधीर न कर देना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों में भर देना.
हम-तुम दोनों मिलकर के, एक प्रीत का गाँव बसायेंगे.
मापतपुरी दुखी ये जग, इसको भी कुछ दे जायेंगे.
बैर है बैरी- प्रीत मीत है, सबको सबक सिखा देना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों में भर देना.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल- 9334414611

Views: 461

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by baban pandey on June 24, 2010 at 10:55am
तेरी जुल्फों की रंगत से, ज्योति का अपहरण हुआ.
अपने खंजन- नयन में रम्भे, अश्रु कभी मत भर लेना.......waah...kya line hai bhai...main to fida hua bhai...pahli baar ye lines padha hai badhai
Comment by Kanchan Pandey on June 23, 2010 at 10:53pm
Satish jee, aapki pratyek rachna ek sey badhkar ek hai, yey rachna bhi kafi achhi hai, kafi sunder rachna likhey hai aap, Thanks for this post,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 23, 2010 at 10:39pm
पाता है रवि रौनक तुमसे, चाँद- सितारे शीतलता.
पवन सुगंध- हिरण चंचलता, रसिक - नयन को मादकता.
जग को मिलता प्राण तुम्हीं से, तुम्हे जगत से क्या लेना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों से भर देना.

सतीश भईया तारीफ के लिये शब्द नही मिल रहे है, बहुत ही बेहतरीन रचना है यह, शब्दो का इतना सुंदर प्रयोग हुआ है कि बार बार पढ़ने को मन करता है, बधाई है आपको, और मैं नमन करता हू आपके सृजनता को,
Comment by Rash Bihari Ravi on June 23, 2010 at 5:15pm
हम-तुम दोनों मिलकर के, एक प्रीत का गाँव बसायेंगे.
मापतपुरी दुखी ये जग, इसको भी कुछ दे जायेंगे.

jai ho kya bat hain bahut badhiaa

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
8 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service