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वाणी वंदना

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रसना पर अम्ब निवास करो,

माँ हंसवाहिनी नमन करूँ.

सेवक चरणों का बना रहूँ,

नित उठ बस तेरा ध्यान धरूँ.

 

छंदों का नवल स्वरुप लिखूँ,

लेखनी मातु रसधार बने.

हो प्रबल काव्य उर वास करो,

हर छंद मेरा असिधार बने.

 

मन का संताप मिटा करके,

भाषा का बोध करा दे माँ.

रख हाँथ शीश पर कृपामयी,

भव सागर पार करा दे माँ.

 

वीणा की मृदुल तान भर दे,

सपनों में नयी जान भर दे.

पद - कंज में पुष्प चढाऊं माँ,

कविता का अमिय ज्ञान भर दे.

 

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Comment

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Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 8, 2012 at 10:22am

आदरणीय राजीव सर सादर नमन , सराहना हेतु बहुत बहुत आभार

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 8, 2012 at 10:12am

अति सुन्दर कविता,मृदु जी.

मन का संताप मिटा करके,

भाषा का बोध करा दे माँ.

रख हाँथ शीश पर कृपामयी,

भव सागर पार करा दे माँ.

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.

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