(गणबद्ध) मोतिया दाम छंद
सूत्र = चार जगण (१६ मात्रा) यानि जगण-जगण-जगण-जगण (१२१ १२१ १२१ १२१)
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दिखी जब देश विदेश अरीत.
दिखा शिशु भी हमको भयभीत .
तजें हम द्वैष बनें मनमीत.
लिखूँ कुछ काव्य अमोघ पुनीत..
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चढ़ा जब द्रोह यहाँ परवान.
चला जब देश अलंग विवान.
दिखे चुप आज सुदेश दिवान.
दुखी मन खोज अनूप सिवान..
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चली तब लेखन की असिधार.
बनी यह रीत अरीत अधार.
मिला कुइ अंत न और सुधार.
घिरी यह नाव पड़ी मझधार..
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मिटी तहजीब मिटी हर रीत.
किया फिर क्यों हमने यह प्रीत.
थका लिख आज सुदेश कुरीत.
लिखे हमनें नित ही नवगीत..
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अरीत = कुप्रथा या कुरीति
अलंग = की ओर
विवान = अर्थी
सिवान = परिसीमा
Comment
आदरणीया महिमा जी उत्साहवर्धन हेतु कोटि कोटि धन्यवाद
चढ़ा जब द्रोह यहाँ परवान.
चला जब देश अलंग विवान.
दिखे चुप आज सुदेश दिवान.
दुखी मन खोज अनूप सिवान.......bahut sunder
आदरणीय राजीव सर सादर नमन ,सराहना के लिए ह्रदय से आभार
बहुत अच्छी कविता,मृदु जी.बहुत सुन्दर भाव हैं.
आदरणीय वाहिद सर आपका स्नेह मिला आपका बहुत बहुत आभार , आप लोगों के बीच रहकर सीख रहा हूँ . आपका आशीर्वाद मिलता रहे कभी न कभी साहित्य के पटल पर सफलता मिल ही जायेगी . पुनः बहुत बहुत धन्यवाद
प्रिय मृदु जी,
जिस तरह से आप नित नए नए छंदों पर आधारित अपनी रचनाएँ मंच पर प्रस्तुत कर रहे हैं वह आपकी बहुआयामी सृजनशीलता का परिचायक है| साथ ही यह आपकी साहित्यिक अभिरुचि और आपकी सीखने की ललक को भी दर्शाता है| भाव पक्ष तो आपका सदैव ही सशक्त रहा है| भाई गणेश जी की बातों से मैं भी पूरी सहमति रखता हूँ| आप निश्चित ही अपने जीवन में बहुत ऊंचाइयों को छुएंगे| हार्दिक बधाई आपको| :))
आदरणीय जवाहर सर सादर नमन , उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभार
आदरणीय प्रदीप सर आप लोगों के स्नेह, मार्गदर्शन और आशीर्वाद के बल पर ही साहित्य क्षेत्र में उन्नति की ओर बढ़ सकूंगा.रचना की सराहना और मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए आपको मेरा शत-शत वंदन
सादर
snehi. rachana ka bhav pasand. aaya. aesi hindi samjhne main mujhe kathinai hoti hai. par aapne arth de diya . kaam ban gaya. agar aage bhi aesa karenge to main to labhanvit hunga. gyan bhi badhega. ashirvad de raha hoon.
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