मेरा यार मुझसे जुदा हुआ,
मेरी जान जैसे निकल गई.
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
उसे चाहना या न चाहना
उसे पूजना या न पूजना
मेरी चाहतों का हिसाब क्या,
मेरी रूह भी हो विकल गई..
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
मेरी आह मुझमे ही मिल गई..
कोई और तेरा न नाम ले
तुझे रख सकूँ निगाह में
तेरी बात भी जो हुई कहीं,
जुबाँ यार मेरी फिसल गई..
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
मेरी आह मुझमे ही मिल गई..
Comment
बहुत सुंदर रचना । बधाई कबूल करें ! अति सुंदर !
आदरणीया महिमा जी प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार
आदरणीया राजेशकुमारी मैम प्रोत्साहन पर कोटि कोटि धन्यवाद,"
शलेन्द्र जी विरह व्यथा और प्यार खो देने का गम दोनों झलक रहे हैं आपकी रचना में दिल की गहराई से निकले भाव ...इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बधाई
आदरणीय प्रदीप सर सादर नमन,प्रोत्साहन हेतु कोटि कोटि धन्यवाद सर
आदरणीय SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR सर सादर नमन,
प्रोत्साहन हेतु कोटि कोटि धन्यवाद सर
आदरणीय बागी सर सादर नमन, "जौ माँगा पाइअ बिधि पाहीं, ए रखिअहिं सखि आँखिन्ह माही."
प्रोत्साहन हेतु कोटि कोटि धन्यवाद सर
आदरणीया सरिता दी प्रोत्साहन हेतु कोटि कोटि धन्यवाद
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
मेरी आह मुझमे ही मिल गई..
bhav purna rachna. badhai.
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