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रिश्वत खाना पाप नहीं है बाबाजी

नयन लड़ाना पाप नहीं है बाबाजी
प्यार जताना पाप नहीं है बाबाजी

अगर पड़ोसन पट जाये तो उसके घर
आना -  जाना पाप नहीं है बाबाजी

बीवी बोर करे तो कुछ दिन साली से
काम  चलाना पाप नहीं है बाबाजी

पत्नी रंगेहाथ पकड़ ले तो उसके
पाँव दबाना पाप नहीं है बाबाजी

रोज़ सुबह उठ, अपनी पत्नी की खातिर
चाय बनाना पाप नहीं है बाबाजी

वेतन से यदि कार खरीदी न जाये
रिश्वत खाना पाप नहीं है बाबाजी

'अलबेला' हर व्यक्ति यहाँ दुखियारा है
इन्हें हँसाना  पाप नहीं है  बाबाजी

-अलबेला खत्री

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Comment

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Comment by Rekha Joshi on July 14, 2012 at 7:31pm

'अलबेला' हर व्यक्ति यहाँ दुखियारा है 
इन्हें हँसाना  पाप नहीं है  बाबाजी , बहुत बढ़िया अलबेला जी ,किसी दुखियारे को हँसाना पाप नही पुण्य है बाबा जी ,बधाई 

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 6:46pm

आभारी हूँ आपके दुलार का ...प्यार का
जय हो आपकी भ्रमर जी......

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 14, 2012 at 6:39pm

वेतन से यदि कार खरीदी न जाये 
रिश्वत खाना पाप नहीं है बाबाजी 

'अलबेला' हर व्यक्ति यहाँ दुखियारा है 
इन्हें हँसाना  पाप नहीं है  बाबाजी 

 आदरणीय अलबेला जी ..बहुत अच्छा बीड़ा उठाया है आप ने या कहें की बीड़ा खाया है पान का ...

लोग तो अब सुपारी खाते हैं उनके नाम का खोखा ...इसे बचाओ बाबा जी 
भ्रमर ५  

 

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 6:29pm

धन्यवाद प्राची जी........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 14, 2012 at 6:27pm
वाह आ. अलबेला जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल
Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 1:58pm

धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद अरुण शर्मा जी.........
आभार

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 1:54pm

आदरणीय अलबेला जी.
हंसी से गूँथ कर ऐसे -२ शब्द गढ़ते हैं की पढ़ कर तबियत हरी हो जाती है. बधाई

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 11:54am

कहना मत किसी से  आदरणीय सीमा जी,
मैं भी नाटक ही कर रहा हूँ....समझ में तो मेरे भी कुछ नहीं आया ...हा हा हा

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 11:52am

गुरूदेव आये नहीं कई दिनों से.....
अँखियाँ प्यासी रे.....

एक विज्ञापन देना चाहिए...गुमशुदा की तलाश है ...हा हाँ हा

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 11:50am

ये सच है आदरणीय संदीप द्विवेदी जी,
बल्कि आप कहें  तो मैं पाँच रूपये के असली स्टाम्प पर भी लिख कर दे सकता हूँ कि मैं वहाँ आसानी से पहुँच  सकता हूँ जहाँ रेलगाड़ी नहीं जा सकती .....इसका कारण ये है कि  मैं पैदल चल लेता हूँ.........हा हा हा

इस बात का समर्थन  छतीस गढ़  में चित्रकोट  और तीर्थ गढ़ आदि प्राचीन झरनों पर चाय बेचने वाली  वह आदिवासी  बुज़ुर्ग महिला भी कर देगी जिसके यहाँ मैंने चार बार चाय पी थी  घबराहट के मारे...हा हा हा हा

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