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गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला

सौरभ जी से चर्चा के पश्चात जो परिवर्तन किये हैं उन्हें प्रस्तुत कर रही हूँ 

परिचर्चा के बिंदु सुरक्षित रह सके  इस हेतु  पूर्व की पंक्तियों को भी डिलीट नहीं किया है जिससे नयी पंक्तियाँ नीले text में हैं 

 

गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला 
प्रीत के मुकुलित सुमन हो भाव मे भास्वर* मिला -----*सूर्य

हो सकल यह विश्व ही जिसके लिए परिवार सम 
नीर मे उसके नयन के स्नेह का सागर मिला 

पी लिया जिसने हलाहल बन के मीरा की तरह 
ऐसी भक्ति से स्वयं फिर आ के वो गिरधर मिला 

पी लिया जिसने हलाहल बन के मीरा बावरी 
प्रेम की  ऐसी ऊँचाई पर स्वयं ईश्वर मिला 

है सबल या है निबल मत सोच रेखा भाग्य की 
लक्ष्य बस उसको मिला जो कर्म मे तत्पर मिला 

है सबल या है निबल मत सोच रेखा भाग्य की 
लक्ष्य तो वो भेदता ,जो कर्म मे तत्पर मिला 

क्या गज़ल क्या गीत क्यों इस बात पर चर्चा करें 
जो हरें पीड़ा ह्रदय की तू वही अक्षर मिला 

ढूंढ के थक जाएगा काबा ओ काशी एक दिन 
वो है भीतर स्वयं के बाहर कहाँ ईश्वर मिला 

टूटते जिन स्वप्न को दरकार है आधार की
आ तू उनकी नींव मे विश्वास के पत्थर मिला 

कैद मे थे वक्त की जो कामनाओं के विहग 
उड़ चले जैसे ही बंधक आस को अम्बर मिला

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Comment

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Comment by seema agrawal on September 12, 2012 at 10:52am

 प्रिय प्राची ,

आपकी इस स्नेह पूर्ण प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 10:43am

//है सबल या है निबल मत सोच रेखा भाग्य की 
लक्ष्य बस उसको मिला जो कर्म मे तत्पर मिला

ढूंढ के थक जाएगा काबा ओ काशी एक दिन 
वो है भीतर स्वयं के बाहर कहाँ ईश्वर मिला

टूटते जिन स्वप्न को दरकार है आधार की
आ तू उनकी नींव मे विश्वास के पत्थर मिला 

कैद मे थे वक्त की जो कामनाओं के विहग 
उड़ चले जैसे ही बंधक आस को अम्बर मिला//

__________________________________

सत्य की राहों में कंटक चल पड़ी पर यह ग़ज़ल.

भाव उन्नत शिल्प सुन्दर कथ्य भी बेहतर मिला ...........बहुत-बहुत हार्दिक बधाई आदरेया सीमाजी  ....सादर 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 12, 2012 at 10:42am

क्या गज़ल क्या गीत क्यों इस बात पर चर्चा करें 
जो हरें पीड़ा ह्रदय की तू वही अक्षर मिला

आदरणीया सीमा जी,

भावनाओं का विहंगम सम्प्रेषण! अत्यंत सुन्दर! साभार,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 12, 2012 at 10:28am

आदरणीया सीमा जी,

आपकी रचनाओं को बार बार पढने का , उनके विस्तृत भाव सागर में बारम्बार डूबने उबरने का मन करता है...
हर बंद मन को छू जाए, गहन चिंतन में ले जाए ऐसा है,
"कैद मे थे वक्त की जो कामनाओं के विहग 
उड़ चले जैसे ही बंधक आस को अम्बर मिला"...... तारीफ़ में हर शब्द कम है. 
हार्दिक शुभकामाएं इस अद्वितीय गीत के लिए. सादर.

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