यह रचना उन (ढोंगी ) बाबाओं और गुरुओं के नाम जो अमरबेल से हर गली में हर रोज उग रहे है .....
Comment
हरविंदर सिंह जी एवं भावेश जी आपका हृदय से धन्यवाद
भावेश जी आपने इस प्रकार के लोगों के लिए जो शब्द प्रयुक्त किए वो बिलकुल उचित हैं //अपनी लच्छेदार बातों के जाल में फंसा कर //
कविता में निहित भावों को सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद उमाशंकर जी
रेखा जी जबतक देश में शिक्षा के महत्व को दरकिनार किया जायेगा ये सब यूँ ही चलेगा (वैसे कई पढेलिखे भी इस आडम्बर में श्रद्धा रखते हैं )दिल से शुक्रिया आपको
"जब तक धरती पर मुर्ख रहेंगे, धूर्तों का पेट भरता रहेगा" आपका कहना ठीक है गणेश जी पर बहुत सी ऐसी परिस्थितियाँ भी होतीं है जो
भोले भाले लोगों को इनके जाल ने फंसने के लिए बेबस करतीं हैं
रचना को समय देने और सराहने के लिए शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मन जी रचना में सन्निहित भावों को समर्थन देने के लिए आपकी अत्यंत आभारी हूँ ...आपके द्वारा प्रेषित शब्द मेरे लिए बहुत महत्व रखते हैं
जिसके अंदर शैतान छिपा हुआ है,
Behad Khoobsurat....
विदूषकों के वाग्जाल से
माया-मंडित इंद्रजाल से
समझ-बूझ औ' सद्-विवेक का
प्रज्ञा से प्रस्थान हुआ है
कोई फिर भगवान हुआ है..........
भौतिकता में उलझे सारे
गुरुओं के आध्यात्मिक नारे
आडम्बर और छद्म-आचरण
सुनियोजित अभियान हुआ है
कोई फिर भगवान हुआ है ........बहुत बढ़िया आदरणीया सीमा जी हार्दिक बधाई
आदरणीया सीमा जी
जब तक हम इंसान अपने अन्दर के भगवान् से परिचित नहीं हो जाते ये बहुरूपियें ठगते रहेंगे, कहा भी गया है कि जब तक धरती पर मुर्ख रहेंगे, धूर्तों का पेट भरता रहेगा, एक अच्छी रचना पर साधुवाद |
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