हुई गया प्रभु से मिलनवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
लख चुरासी तूने नरक बिताया
प्रभु नाम तूने कभी नही ध्याया
अब लिया देह में जन्मवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
आठों पहर किनी चुगली निंन्दवा
कानों में घोला विष का प्याल्वा
अब पाया प्रभु का चिन्तनवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
जन्म डुबोई तूने भोग में रसनवा
कड़वी वाणी बोली कड़वा वचनवा
अब पाया राम नाम का प्रसादवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
धन कमाया तूने तोड़ के तनवा
सिर खपाया तूने जोड़ के धनवा
अब खोला प्रभु बैंक में खतवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
माटी मिलाय दई माटी में मितवा
बिसराय दियो राम का नामवा
अब जाना हरी का स्वरूपवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
हुई गया प्रभु से मिलनवा
सुन रे अनाड़ी हमरा मनवा ...
Comment
वाह आरती जी वाह, भक्ति रस में ओतप्रोत सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें, ओ. बी. ओ. पर आने के बाद आपकी मेहनत एवं प्रयास रंग ला रहा है.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद पाठक जी..
सुन्दर रचना आरती जी बधाई स्वीकारें............
आदरणीय सर..आपको मेरी रचना पसंद आई, मेरा जीवन धन्य हो गया ..अपना आशीर्वाद एवं स्नेह ऐसे ही बनाये रखना..धन्यवाद..
आदरणीया आरती जी:
बहुत अच्छी सीख दी है आपने,
कहा था न हमने
बहुत कुछ सीखना है आपसे!
प्रसन्न रहो,
विजय निकोर
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