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मान है,सम्मान है.

पर ईमान नही.

धन है दौलत है,

पर नियत नही.

चाह आसमान में उड़ने की,

पर मेहनत नही.

मंजिले है राहे है,

पर मुसाफ़िर नही.

मंदिर है भगवान है,

पर भक्त नही.

माँ है बाप है ,

पर सेवा नही.

भाई है बहन है,

पर प्यार नही.

नेता है भ्रष्टाचार है,

पर विकास नही.

संत है सत्संग है,

पर सत्संगति नही.

जन्म है मृत्यु है,

पर भय नही.

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Comment

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Comment by Aarti Sharma on March 16, 2013 at 11:50pm

आदरणीय विजय  भाई सादर प्रणाम..रचना को सराहने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ..

Comment by Aarti Sharma on March 16, 2013 at 11:48pm

आपका हार्दिक धन्यवाद डॉ. स्वर्ण जी 

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 1:09pm

कलियुग पर बहुत बढ़िया भावपूरण  आलेख 


sharing  के लिए आभार 

 

Comment by vijay nikore on March 9, 2013 at 1:28pm

आदरणीया आरती जी:

 

न जाने कैसे यह रचना पढ़ने से रह गई थी।

 

आरती जी, इस कविता में शब्दों की सरलता इसे

और भी सुन्दर बना रही है।

 

आपको बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by Aarti Sharma on February 2, 2013 at 11:41pm

आपका बहुत बहुत धन्यवाद मैम ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 2, 2013 at 11:34pm

संत है सत्संग है,

पर सत्संगति नही.

जन्म है मृत्यु है,

पर भय नही.---बिलकुल सही कहा बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई आरती जी 

Comment by Aarti Sharma on February 2, 2013 at 11:24pm

आपको मेरी रचना पसंद आई .....धन्यवाद  सर ..

Comment by नादिर ख़ान on February 2, 2013 at 10:52pm

सुंदर भाव लिए उम्दा रचना ...

बहुत खूब ... आरती जी 

Comment by Aarti Sharma on February 1, 2013 at 9:04am

बहुत बहुत धन्यवाद सर..

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 1, 2013 at 9:02am

 सादर,कलियुग को परिभाषित करती सुन्दर रचना के साथ आपका स्वागत है आदरणीया आरती शर्मा जी. 

कृपया ध्यान दे...

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