For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज दि. 03/ 03/ 2013 को इलाहाबाद के प्रतिष्ठित हिन्दुस्तान अकादमी में फिराक़ गोरखपुरी की पुण्यतिथि के अवसर पर गुफ़्तग़ू के तत्त्वाधान में एक मुशायरा आयोजित हुआ. शायरों को फिराक़ साहब की एक ग़ज़ल का मिसरा   --तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं--  तरह के तौर पर दिया गया था जिस पर ग़ज़ल कहनी थी. इस आयोजन में मेरी प्रस्तुति -

********
दिखा कर फ़ाइलों के आँकड़े अनुदान लेते हैं ।
वही पर्यावरण के नाम फिर सम्मान लेते हैं ॥

 

निग़ाहें भेड़ियों के दाँत सी लोहू* बुझी लेकिन
मुलायम भाव आँखों में  लिये  संज्ञान लेते हैं ॥

 

हमें मालूम है औकात तेरी, ऐ ज़माने, पर -
करें क्या, बाप हैं, चुपचाप कहना मान लेते हैं ॥

 

सलोने पाँव की थपथप, किलकती तोतली बोली..
तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं

 

पिशाची सोच के आगे उमीदें भी जिलाना क्या
भरे सिन्दूर जिसके नाम, वो ही जान लेते हैं.. . ॥

 

इधर जम्हूरियत के ढंग से है मुल्क बेइज़्ज़त
उधर वो ताव से सिर काट इसकी आन लेते हैं ॥

 

लुटेरे थे लुटेरे हैं.. ठगी दादागिरी से वो--
कभी ईरान लेते हैं, कभी अफ़ग़ान लेते हैं !!

******************

-सौरभ

 

*लोहू - लहू, खून

Views: 1324

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 7, 2013 at 10:23pm

दिखा कर फ़ाइलों के आँकड़े अनुदान लेते हैं ।
वही पर्यावरण के नाम फिर सम्मान लेते हैं ॥....

इस मतले ने तो ग़ज़ल की ऊँचाई बहुत ऊपर कर दिया है भईया, क्या बेजोड़ कहन है, एक तरफ आंकड़ों का खेल और फिर पर्यावरण के नाम सम्मान, दो मिसरों में आपने बहुत ही करारा तंज किया है ।

 

निग़ाहें भेड़ियों के दाँत सी लोहू* बुझी लेकिन
मुलायम भाव आँखों में  लिये  संज्ञान लेते हैं ॥ ...

अब तो दोमुहें सांप बहुतायत में पाये जाने लगें हैं, या यह कहें कि बहुमुहें सर्प (poly face snacks ) तो गलत न होगा । खैर बहुत ही चतुर, चौकस और चौकन्ना रहने की आवश्यकता है, बहुत ही संदेशपरक शेर । 

 

हमें मालूम है औकात तेरी, ऐ ज़माने, पर -
करें क्या, बाप हैं, चुपचाप कहना मान लेते हैं ॥ ....

आय हाय हाय, क्या बात कही है आदरणीय, यह शेर तो भारतीय संस्कृति और संस्कार का प्रतिनिधित्व करता है, मुझे यह शेर सबसे ज्यादा हिट किया ।  जो रे ससुर भाग जो, बाप भइला के जिम्मेवारी बा कपारे, ना त बतउती :-) .. इहे बात नू !!

सलोने पाँव की थपथप, किलकती तोतली बोली..
तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं ॥

यह शेरऐसे नहीं आया है आदरणीय, इसे तो आप जी रहे है, बहुत ही खुबसूरत गिरह ,वाह वाह ।  

 

पिशाची सोच के आगे उमीदें भी जिलाना क्या 
भरे सिन्दूर जिसके नाम, वो ही जान लेते हैं.. . ॥

बहुत ही सामयिक शेर, सब कुछ सभी देख सुन रहे हैं, बहुत उम्दा ख्याल ।

इधर जम्हूरियत के ढंग से है मुल्क बेइज़्ज़त
उधर वो ताव से सिर काट इसकी आन लेते हैं ॥

क्या कहे आदरणीय यह शेर गहरे कुएँ में धक्का दे देता है उफ्फ ।

 

लुटेरे थे लुटेरे हैं.. ठगी दादागिरी से वो--
कभी ईरान लेते हैं, कभी अफ़ग़ान लेते हैं !!

समरथ को नहीं दोष गोसाईं .... लुटेरे थे लुटेरे हैं .....वाह वाह ....बिलकुल खरी खरी ।

कुल मिलाकर कहे तो आपकी अच्छी 4-5 ग़ज़लों में यह शामिल करने योग्य है, मैं कई कई बार तरन्नुम में पढ़ गया , बहुत ही अच्छी ग़ज़ल , बधाई स्वीकार करें आदरणीय सौरभ भईया ।

Comment by mrs manjari pandey on March 7, 2013 at 6:24pm

सलोने पाँव की थपथप, किलकती तोतली बोली..
तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं

 

आदरणीय    सौरभ जी  क्या खूब शेर कहे हैं   हालात खोल कर रख दिया है 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 7, 2013 at 3:59pm

वाह सौरभ जी क्या खूब की ग़ज़ल कही है...बहुत ही जानदार मतला....माशाल्लाह

दिखा कर फ़ाइलों के आँकड़े अनुदान लेते हैं ।
वही पर्यावरण के नाम फिर सम्मान लेते हैं ॥

ढेरों दाद कुबूल करें !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 7, 2013 at 3:38pm

पिशाची सोच के आगे उमीदें भी जिलाना क्या 
भरे सिन्दूर जिसके नाम, वो ही जान लेते हैं.. . ॥

 

इधर जम्हूरियत के ढंग से है मुल्क बेइज़्ज़त

उधर वो ताव से सिर काट इसकी आन लेते हैं ॥

आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी 

सादर अभिवादन 

बहुत खूब. बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 6, 2013 at 4:36pm

आदरणीय दिगम्बर नासवाजी, आप द्वारा हुआ प्रस्तुत ग़ज़ल का अनुमोदन मेरे लिए थाती है. आपकी उदार प्रतिक्रिया का मैं आभारी हूँ.

मैं ग़ज़ल की विधा के मद्देनज़र आप जैसे प्रबुद्ध गज़लकारों की सदा सुसलाह चाहूँगा. 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 6, 2013 at 4:32pm

आदरणीय विजय निकोरजी, आपको पूरी ग़ज़ल संतुष्ट कर पायी यह मेरे रचनाकर्म को आप द्वारा दिया गया सम्यक मान है.

आपके सहयोग का सदा आकांक्षी रहता हूँ.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 6, 2013 at 4:29pm

भाई संदीप वाहिदजी, धन्न-धन्न-धन्न !!

आप जैसे ग़ज़ल विधा के संवाहक और निमग्न अभ्यासरतियों से प्रशंसा के बोल प्राप्त करना कम बड़ी बात नहीं. परस्पर सहयोग बना रहे.

सधन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 6, 2013 at 4:21pm

भाई राजेश झाजी, आपने तो उदारता से इस प्रस्तुति को स्वीकार किया है कि मन मुग्ध हो उठा. परस्पर सहयोग बना रहे.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 6, 2013 at 4:20pm

आदरणीया आशा जी, आप द्वारा प्रस्तुत ग़ज़ल को पसंद किया जाना मेरे लिए अत्यंत संतोष की बात है.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 6, 2013 at 4:17pm

भाई रामशिरोमणि, आपको ग़ज़ल पसंद आयी, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service