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मौ  मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on April 5, 2013 at 11:57am

आदरणीया, विजय श्री जी,बहुत ही भावनात्मक रचना है बधाई हो आपको सादर

Comment by vijay nikore on April 5, 2013 at 10:32am

विजयाश्री जी:


नई पीढ़ी अपनी नई मान्यताओं के बीच माता-पिता की भावनाओं को कैसे ठेल देती है...!


इस मार्मिक रचना के लिए बधाई।


सादर,

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 5, 2013 at 9:57am

मनुष्य को जब अपनी भूल का अहसास होता है तब तक देर हो चुकी होती है | माँ का दर्द बेटी से बात करने पर याद आया " 

सीख देती अच्छे भाव अभ्य्क्ति की रचना के लिए बधाई विजय श्रीजी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 11:03pm

आदरणीया, विजय श्री जी,  बात जब अपने पर आती है तभी ज्ञान झलकता है।  मनोदशा का यथा चित्रण बहुत बहुत सुन्दर,  बधाई स्वीकारें।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 10:50pm

बहुत ही भावनात्मक रचना है बधाई हो आपको सादर

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