For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अग्नि-परीक्षा

           अग्नि-परीक्षा

 

मृत्यु के दानव-से क्रूर-कर्म तक

वक्त और बेवक्त तुम्हें

मेरी अग्नि-परीक्षा करनी थी न?

लो कर लो, देख लो मुझको

जी रही हूँ मैं कब से केवल एक नहीं

तुम्हारी जलाई असंख्य अग्निओं में

जो अभी तक मन में तुम्हारे बुझी नहीं।

 

अग्नि .... नुकीली धारदार शंका की,

हृदय में तुम्हारे सदैव सुलगते

मेरे प्रति ज्वरित अविश्वास की,

धधकती भयानक इर्ष्या की,

तुम्हारे झूठे अस्थाई पुरूषत्व की,

और .. और न जाने कौन-कौन-सी

अग्नियाँ जो भभकती रही हैं तुम्हारे

अंत:स्थ तिमिर के तले

जिनका तुम्हें स्वयं भी ज्ञान नहीं,

जिनकी अग्निमान लपटों से तुम

मुझको खाक करने को,

हमारे इस रिश्ते को ऐसे

आज फूंकने को भी तैयार हो।

 

यह अनगिनत अग्नियाँ

तो तुम्हारे अंदर रहीं,

पर पल-पल ताप को उनके

मैं अपने "अकेलों" में जीती रही,

और आज मैं गर्व से कह सकती हूँ,

कि हर बार कितने गलत थे तुम,

तुम्हारी कोई भी अग्नि मुझको

भसम न कर सकी।

हाँ, स्तब्ध हूँ मैं कि

तुम्हारी हर अग्नि-परीक्षा में पूरी उतर कर

मैं ही अब तुमको पूर्णत्या पहचान सकी,

कि जैसे कोई फटी हुई पुरानी किताब मैंने

आख़िर अब शूरू से अंत तक पढ़ ली।

                      -------

                                               -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 632

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on June 19, 2013 at 9:47pm

वाह आदरणीय विजय निकोर जी बहुत ही सुन्दर //हार्दिक 

Comment by coontee mukerji on June 19, 2013 at 4:42pm

निकोर जी , जैसे आपने नारी आत्मा को पूरी तरह आत्मसात कर उनकी अंतरात्मा तक पहूँच गये हैं.........नारी मनोविज्ञान की उत्कृष्ट रचना.

सादर

कुंती

Comment by Shyam Narain Verma on June 19, 2013 at 2:47pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by Sumit Naithani on June 19, 2013 at 12:58pm

जी रही हूँ मैं कब से केवल एक नहीं

तुम्हारी जलाई असंख्य अग्निओं में

जो अभी तक मन में तुम्हारे बुझी नहीं।..... सुंदर 

परन्तु आप इसे पुरुष भाव में भी लिखते तो सुंदर ही लगती ......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
32 minutes ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service