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ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

उमर भर साथ तू शामिल रही परछाइयों में,

सहा जाता नहीं है दर्द-ए-दिल तन्हाइयों में,

जरा सी बात पे रिश्ता दिलों का तोड़ते हैं,

उतर पाते नहीं जो प्यार की गहराइयों में,

भला इन्सान कोई दूर तक दिखता नहीं है,

बुराई घुल रही तेजी से है अच्छाइयों में,

जमीं ही रोज जीवनदान देती है सभी को,

जमीं ही रार बोती है सगे दो भाइयों में,

निगाहों को दिखाकर ख्वाब ऊँचें आसमां का,

गिराते लोग हैं धोखे से गहरी खाइयों में....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on July 30, 2013 at 10:46pm

//जमीं ही रोज जीवनदान देती है सभी को,

जमीं ही रार बोती है सगे दो भाइयों में,//

यह शेर तो बेमिसाल है।

बहुत ही उम्दा गज़ल! बहुत खूब! सभी शेर लाजवाब हैं। आपको हार्दिक बधाई!

Comment by ram shiromani pathak on July 30, 2013 at 10:34pm

waah waaah bhai jai ho//hardik badhai apko

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