बहर : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
......... १२२२, १२२२ .........
अलग बेशक हुए मजहब,
सभी का एक लेकिन रब,
नज़र में एक से उसके,
भिखारी हो भले साहब,
जिसे जितनी जरुरत है,
दिया उसको उसे वो सब,
सभी को एक सी शिक्षा,
खुदा का बाँटता मकतब,
(मकतब : विद्यालय)
मुसीबत में पुकारे जो,
चले आयें बने नायब,
(नायब : सहायक)
अजब ये दौर आया की,
हुई है सभ्यता गायब...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
वाह बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय भाई अरुण जी //हार्दिक बधाई आपको
बढ़िया ग़ज़ल भाई अरुण जी
दाद क़ुबूल कीजिये.....
बहुत खूब अरुण ,बधाई स्वीकारें
मुसीबत में पुकारे जो,
चले आयें बने नायब,
(नायब : सहायक)
Umdaa baat hai bhai ji dil se daad kabul kare
वाह! खूबसूरत गज़ल
वाह! खूबसूरत गज़ल
aadarniya arun ji bahut hi shandar ghazal .....bahut badhaie.
जिसे जितनी जरुरत है,
दिया उसको उसे वो सब,,,, में न जाने क्यों कुछ असहज लगा मुझे|
अजब ये दौर आया की,
हुई है सभ्यता गायब..,, बहुत खूब शेअर, वाह!!
दिली दाद लीजिये आदरणीय अरुण जी!
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
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