For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक सुनहरी आभा सी छायी थी मन पर

मैं भी निकला चाँद सितारे टांके तन पर

इतने में ही आँधी आयी, सब फूस उड़ा

सब पत्ते, फूल, कली, पेड़ों से झड़ा, उड़ा

धूल उड़ी, तन पर, मन पर गहरी वह छाई

मन अकुलाया, व्याकुल हो आँखें भर आई

सरपट भागें इधर उधर गुबार के घोड़े

जैसे चित के बेलगाम से अंधे घोड़े

कुछ न दिखता पार, यहाँ अब दृष्टि भहराई

कैसा अजब था खेल, थी कितनी गहराई

छप्पर, बाग, बगीचे, सब थे सहमे बिदके

मैं भी देखूँ इधर उधर सब ही थे दुबके

दौर थमा, धूल जमी, आभा वापस आई

लेकिन अब भी मन है, आँख नहीं खुल पाई

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 1052

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on August 8, 2013 at 5:52pm

आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार! इस विधा को जितना भी जान समझ सका हूं वह आपके सहयोग के बिना शायद सम्भव नहीं होता। आपसे इस विधा पर हुई चर्चाएं इसे समझने में बहुत लाभकारी रहीं। आपने अन्य भाषाओं में इस विधा पर हुए कार्य का जिस तरह से अध्ययन किया है। मैं चाहूंगा कि आप वह जानकारियां हम सबसे साझा करें इसलिए मेरा विनम्र अनुरोध है कि आप भी इस विधा पर एक लेख उपलब्ध कराएं।
सादर!

Comment by वेदिका on August 8, 2013 at 4:50pm

बहुत भावपूर्ण रचना के लिए बधाई लीजिये आदरणीय बृजेश जी! 

सुधीजनों का निवेदन सानेट पर लेख होना चाहिए, अवश्यमेव ही पूर्ण करिये, ताकि सम्पूर्ण जानकारी मिले,

सादर !!  

Comment by Vindu Babu on August 8, 2013 at 4:18pm
आदरणीय सानेट की विधा पर अब आपकी लेखनी की गति सुगम होती जा रही है।
बहुत ही सुन्दर सानेट प्रस्तुत की है आपने शिल्प औप भाव दोनो ही दृष्टि से!
इस विधा का हिंदी में भी महत्तवपूर्ण स्थान हो,ऐसी शुभेच्छा के साथ सानेट पर एक लेख की सादर प्रतीक्षा करती हूं।
इस सफल रचना के लिए आपको ढेरों बधाई आदरणीय!
Comment by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 1:23pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by annapurna bajpai on August 5, 2013 at 1:05pm
आदरणीय बृजेश जी बहुत ही सुंदर भावभिव्यक्ति की है आपने , बहुत ही सुंदर रचना पर बधाई ।
Comment by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 12:21pm

आदरणीय अरुन भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on August 5, 2013 at 12:20pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका बहुत आभार!

Comment by Arun Sri on August 5, 2013 at 12:17pm

वाह !
बहुत बढ़िया !
लगता है कि अपना ही अनुभव है !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 5, 2013 at 12:07pm

कुछ न दिखता पार, यहाँ अब दृष्टि भहराई

कैसा अजब था खेल, थी कितनी गहराई...........यह पंक्ति बहुत सुंदर है,

 आदरणीय बृजेश जी, गहराई ली हुयी रचना पर, हार्दिक बधाई

Comment by बृजेश नीरज on August 3, 2013 at 10:09pm

आदरणीय राणा प्रताप जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों ने मेरे प्रयास को सार्थकता प्रदान की। आपके आदेशानुसार इस विधा पर लेख तैयार करने का प्रयास करता हूँ।

सादर!  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service