For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक गज़ल =
============
मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन
१२२२     १२२२    १२२२   १२२२
===============================
वही नग्मॆं वही रातॆं, वही ख़त और आँसू भी ॥
सतातॆ हैं हमॆं मिलकॆ, मुहब्बत और आँसू भी ॥१॥

कभी हँसना कभी रॊना,कभी खॊना कभी पाना,
सदा रुख़ मॊड़ लॆतॆ हैं,तिज़ारत और आँसू भी ॥२॥

हमारॆ नाम का चरचा, जहाँ दॆखॊ वहाँ हाज़िर,
नहीं जीनॆ  हमॆं दॆतॆ, शिकायत और आँसू भी ॥३॥

हमॆं इल्ज़ाम दॆता है, ज़माना बॆ-वफ़ा कह कॆ,
नहीं अब साथ दॆतॆ यॆ, इबादत और आँसू भी ॥४॥

नहीं हॊती ख़ुदा तॆरी, दुआ औ बन्दगी मुझसॆ,
भला कैसॆ सँभालूं मैं, तिलावत और आँसू भी ॥५॥

कभी तॊड़ा कभी जॊड़ा,गमॆ-दिल का यही रॊना,
हक़ीमॊं की बदौलत हैं,तिबाबत और आँसू भी ॥६॥

इरादॆ ज़िन्दगी कॆ हम, नहीं समझॆ नहीं जानॆ,
पड़ॆ भारी बगावत पर, बगावत और आँसू भी ॥७॥

निभा लॊ दुश्मनी अपनी,अभी साँसॆं बकाया हैं,
हमॆं अब रास आयॆ हैं, अदालत और आँसू भी ॥८॥

यही हम-राह अब मॆरी, इबादत जुस्तजू तॆरी,
मुझॆ  मंजूर  हैं दॊनॊं, इनायत और आँसू भी ॥९॥

वही चाहत वही उल्फ़त,वही बरसात का मौसम,
वही  उम्मीद तन्हाई, ज़ियारत  और आँसू भी ॥१०॥

हमारॆ "राज"मॆं क्या है,न दौलत है न ताक़त है,
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ दॊनॊं,सियासत और आँसू भी ॥११॥

कवि-"राज बुन्दॆली"
०५/०८/२०१३

पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

Views: 729

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on August 6, 2013 at 5:28pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 6, 2013 at 10:33am

वाह आदरणीय वाह बेहतरीन शानदार ग़ज़ल सभी के सभी अशआर बेहद सुन्दर बन पड़े हैं, हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 6, 2013 at 9:38am

"कभी हँसना कभी रॊना,कभी खॊना कभी पाना,
सदा रुख़ मॊड़ लॆतॆ हैं,तिज़ारत और आँसू भी ॥२॥ "............वाह! शानदार शेर

तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय राज बुन्देली जी

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 8:34am

बहुत खूब गज़ल हुयी है,

बेहतरीन अश'आर हुए है

हमारॆ नाम का चरचा, जहाँ दॆखॊ वहाँ हाज़िर,
नहीं जीनॆ  हमॆं दॆतॆ, शिकायत और आँसू भी ॥३॥ ....क्या कहने, लाजवाब !!  

बधाई जिंदाबाद गज़ल के लिए !!

Comment by Pankaj Trivedi on August 6, 2013 at 7:47am

कभी हँसना कभी रॊना,कभी खॊना कभी पाना,
सदा रुख़ मॊड़ लॆतॆ हैं,तिज़ारत और आँसू भी ॥२॥

यूं तो सारे अशआर लाजवाब है भाई ! बधाई

Comment by Abhinav Arun on August 6, 2013 at 4:57am

वाह वाह राज जी क्या शानदार खूबसूरत अशआर कहे हैं ग़ज़ल के हर शेर में जान है जिंदा और बोलती ग़ज़ल के किस शेर की तारीफ करून हर शेर लाजवाब बाकमाल !! बहुत बहुत बधाई इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service