१२२२ १२२२ १२२२ १२
बहर---हजज मुसम्मन महजूफ
काफिया ---ना
रदीफ़ ----लगा
सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना लगा
तेरे इस दर्द के आगे मेरा अदना लगा
मिली धोबिन मुझे कल राह में पहने हुए
दुपट्टा पास से देखा मुझे अपना लगा
चुराई पैर की पायल मुझे कुछ गम नहीं
बड़े सम्मान से उसका मुझे झुकना लगा
चिढ़ाने के लिए वो दे रहा था गालियाँ
मुझे तो राम का ही नाम सा जपना लगा
निकाला जेब से बटुवा किसी ने राह में
बुरा फिर भीड़ से उसका मुझे पिटना लगा
गिराया टांग से मुझको किसी ने दौड़ में
मुझे वो ख़्वाब मैं या नींद में गिरना लगा
दिया धोखा किसी ने राह मैं मुझको कभी
फ़कत दिन चार का मुझको बुरा सपना लगा
करूं क्या है बुरी पर ये मिरी आदत सही
भला हर ख़ार का मुझको सदा चुभना लगा
छुपाना “राज” ये मुमकिन नहीं लगता मुझे
सुनाने से कहीं अच्छा मुझे लिखना लगा
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय अखिलेश जी आपकी इस उत्साह वर्धन करती हुई प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक रूप से आभारी हूँ
आदरणीय गिरिराज जी आपको ग़ज़ल में ये मेरा हास्य का प्रयोग अच्छा लगा मेरा लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार आपका
नए भाव की ताजगी लिए इस ग़ज़ल के लिए बधाई आदरणीया !
ऐसी गज़ल पढ़ने को कम ही मिलती है बधाई आ. राजेश कुमारीजी ।
आदरणीया राजेश कुमारी जी , बहुत बढ़िया हास्य गज़ल की रचना की है आपने , आपको ढेरों बधाई !!!!
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