बड़े दिल का तो वो कद में बड़ा होने से पहले था
जमीं से राब्ता उसका ख़ुदा होने से पहले था
करें मत फ़िक्र अब मेरी सभी एहबाब घर जाएँ
मुझे एहसास-ए-तन्हाई नशा होने से पहले था
हुनर आया तपिश सहकर हजारों चोट खाकर ही
फ़कत माटी का लोंदा वो घड़ा होने से पहले था
बुरी सुहबत ने ही उसको मियाँ ऎसा बनाया है़
वगरना नेक बच्चा वो बुरा होने से पहले था
मुखौटे में निहाँ कितना घिनौना रूप था उसका
मसीहा वेश में ढोंगी सज़ा होने से पहले…
Added by rajesh kumari on October 1, 2019 at 12:00pm — 7 Comments
आदरणीय योगराज जी , आदरणीय सौरभ जी , आदरणीय समर भाई जी , तथा जिस मित्र ने भी कभी भी मेरा मार्ग दर्शन किया सभी को समर्पित ,करती हूँ ये रचना .
जीवन निर्माता भाग्य विधाता सब दुःख हरता ईश्वर है़
तृण तृण परिभाषित राह प्रदर्शित पग- पग करता गुरुवर है़
गिर जाने पर हाथ बढ़ाना
हर मुश्किल में पार लगाना
गहन तमस में घिर जाने पर
भटकों को यूँ राह दिखाना
तेरी अनुकंपा के आगे
कष्टों की धुंध का छट जाना
पतझड़ के मारे तरुओं पर
हरित हरित…
Added by rajesh kumari on September 5, 2019 at 4:30pm — 6 Comments
तिनका तिनका जोड़ बनाया एक घरौंदा
दरवाजे पर आँधी आके ठहर गई
बर्बादी की धीमे-धीमे
आहट पाकर
स्वप्नकपोतों की
आँखों में भय के साये
सहमे सहमे भीरु
कातर बुनकर देखो
कोने में जा बैठे
दुबके सकुचाये
…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 3, 2019 at 12:00pm — 7 Comments
१.हास्य
उठाई है़ किसने ये दीवार छत पर
अब आएगा कैसे मेरा यार छत पर
अगर उसके वालिद का ये काम होगा
बिछा दूँगा बिजली का मैं तार छत पर
बताकर तू पढ़ती ख़बर नौकरी की
चली आना लेकर तू अख़बार छत पर
सुखाने को पापड़ या चटनी मुरब्बा
करा मुझको अपना तू दीदार छत पर
गया उसके घर पे जो छुपते छुपाते
बहुत ही कुटा मैं पड़ी मार छत पर
न तारे दिखे फ़िर हुआ चाँद ग़ायब
सुनी हड्डियों की जो झंकार छत पर…
Added by rajesh kumari on January 22, 2019 at 11:45am — 13 Comments
राजा ये सोचता है कि प्यादा मज़े में है
प्यादा ये सोचता है कि राजा मज़े में है
लंगड़ा ये सोचता है कि अंधा मज़े में है
अंधा ये सोचता है कि लंगड़ा मज़े में है
हर नाज़ नखरे दिल के उठाता है ज़िस्म ये
पर दिल ये सोचता है कि गुर्दा मज़े में है
गुल के बिना वुजूद तो इसका भी कुछ नहीं
पर सोचता गुलाब कि काँटा मज़े में है
उस वक्त चढ़ गई थी हवाओं…
Added by rajesh kumari on December 4, 2018 at 11:15am — 12 Comments
गर है अंजाम महब्बत का क़यामत होना
मुझको मंजूर क़यामत से महब्बत होना
बे-मआनी नहीं ये सब है महब्ब्त की ख़ुराक
दरमियाँ उसके गिले शिकवे शिकायत होना
आस्माँ की ही अना का है नतीज़ा यारो
उसके ही चाँद सितारों में बगावत होना
बेच दी है मेरे गुलशन की महक गुलचीं ने
इसको कहते हैं अमानत में ख़यानत होना
ये ही करता है मुकम्मल मेरे…
Added by rajesh kumari on December 1, 2018 at 4:00pm — 13 Comments
जर्जर तेरा महल हुआ है
बासी आबोदाना
रूह का पाखी बोल रहा चल
बदलें आज ठिकाना
कोने कोने जाल मकड़िया
ढहने को तैयार दुकड़िया
ईंटें होती नंगी सारी
गारे की भी तंगी भारी
गाटर हुआ पुराना
पसरी आँगन बीच उदासी
जमी हुई हैं सभी निकासी
धूप हवा आती डर डर कर
धीमे धीमे ठहर ठहर…
Added by rajesh kumari on October 24, 2018 at 9:48pm — 12 Comments
नाभी में लेकर कस्तूरी
तय करता मृग कितनी दूरी
पागल मनवा उलझा उलझा
सहरा-सहरा जंगल-जंगल
खोज रहा है नादानी में
बौराया सा हर पल प्रति पल
नाभी में लेकर कस्तूरी
तय करता मृग कितनी दूरी
रब के दर्शन की चाहत में
मंदिर मस्जि़द रस्ते रस्ते
भान नहीं है उनको इतना
राम रहीमा उर में बसते
बाहर ढूंढें चंदन नूरी
कैसे होगी चाहत पूरी
खेतों में जब उगता सूरज
मिलता सबसे वो हँस हँस कर
उजली भोर संदेशा…
Added by rajesh kumari on September 22, 2018 at 11:49am — 16 Comments
मॉरिशस में हिंदी साहित्यिक समारोह
एक एतिहासिक दिन
7 सितम्बर 2018 हिंदी प्रचारिणी सभा मॉरिशस,परिकल्पना संस्था भारत तथा उच्चायोग मॉरिशस के संयुक्त तत्वाधान में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिंदी भवन लॉन्गमाउन्टेन पोर्ट लुई मॉरिशस में सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ|
जिसमे भारत के सहभागी ३२ साहित्यकारों को भिन्न भिन्न विधाओं के मद्देनज़र सम्मानित किया गया| मुझे मेरे लघुकथा संग्रह ‘गुल्लक’ हेतु ये सम्मान प्राप्त हुआ|
परिकल्पना संस्था से मेरा जुड़ाव कई वर्षों से है| २०१२ में…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 11, 2018 at 6:09pm — 9 Comments
मेघदूत गीत
नयनों के गमले सूख रहे
ऐ! मेघदूत कब आओगे
तकते तकते अम्बर घट को
चातक का मन टूट गया
ज्वाला जैसी तपती काया
बैरी सावन रूठ गया
अब किस विध इतनी पीर सहे
कब मेघा जल बरसाओगे
व्याकुल कजरा व्याकुल गजरा
व्याकुल कंगन ये बिंदिया
काँटों के बिस्तर पर तन है
चैन नहीं पावै निंदिया
साँसों साँसों में पीर दहे
कब सुख घट तुम छ्लकाओगे
साजन को तू जाकर देना
ये कुछ भीगे मोती हैं
मन की…
Added by rajesh kumari on July 25, 2018 at 7:18pm — 10 Comments
बेसबब बेसाख़्ता रफ़्तार है कुछ कीजिये
लड़खड़ाती जिंदगी हर बार है कुछ कीजिये
उठ रही हैं उँगलियाँ सब आपके घर की तरफ़
हाशिये पर आपकी दस्तार है कुछ कीजिये
वक्त आते ही डसेगा एक दिन वो आपको
आस्तीं में पल रहा मक्कार है कुछ कीजिये
आपके घर की तरफ़ से आ रहे पत्थर सभी
आपके घर में छुपा गद्दार है कुछ कीजिये
इस तरह तो मुफ़्लिसी दम तोड़ देगी भूख से
आसमां को छू रहा बाज़ार है कुछ कीजिये
हैं मुखालिफ़ कुछ हवायें हो रही कमजोर…
Added by rajesh kumari on July 11, 2018 at 9:57pm — 32 Comments
1212 1212 1212 12
बहक गया अगर समां ख़ुदा न ख़्वास्ता
बिखर गया अगर जहाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
चिराग़ हम लिये खड़े यही तो सोचकर
भटक गया जो कारवाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उठाना मत सनम निकाब मुझको देखकर
मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता
पता चमन का तुम उसे न देना दोस्तों
इधर मुड़ी अगर खिजाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
किया क्या इंतज़ाम आग को बुझाने का
अगर उठा कहीं धुआँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उड़ी हुई मेरी है नींद इस ख़याल से
बढ़ी जो…
Added by rajesh kumari on June 9, 2018 at 12:42pm — 22 Comments
दोहे की टेक ले कर उल्लाला छंद पर गीत (उल्लास )
जब तक जीवन में रहे , जीवित हास प्रहास ।
लायेंगी खुशियाँ तभी , जीवन में उल्लास ।
तम करता जब नृत्य है , उगता तब आदित्य है ।
पूर्वजों का कथ्य है , लेकिन बिल्कुल सत्य है ।
तन में श्रम की शक्ति हो , मन में हो विश्वास ।
लाएँगी खुशियाँ तभी , जीवन में उल्लास ।
अहम वहम को छोड़ दे , ईर्ष्या का रुख मोड़ दे ।
नफ़रत को झ्न्झोड़ दे , दिल से दिल को जोड़ दे ।
आयेगा चल कर तभी , तेरे पास उजास…
Added by rajesh kumari on May 22, 2018 at 5:40pm — 4 Comments
1222 1222 1222 1222
मुख़ालिफ़ होअगर मौसम तो कुछ अच्छा नहीं रहता
बदलते वक्त में कोई कभी अपना नहीं रहता
कोई इंसान रिश्तों के बिना जिंदा नहीं रहता
मुहब्बत के बिना पक्का कोई रिश्ता नहीं रहता
बुजुर्गों को दुखी करने से पहले सोच ये लेना
शज़र जब सूख जाता है कोई पत्ता नहीं रहता
जहाँ पर मुफलिसी बच्चों से बचपन छीन लेती है
किसी बच्चे के दिल में भी वहाँ बच्चा नहीं रहता
ज़रूरत ज़िस्म की जिनको मशीनों सा बना…
Added by rajesh kumari on May 19, 2018 at 10:46pm — 15 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
तुम अपने दस्त-ए-हुनर से समां बदल डालो
अगर पसंद नहीं है जहाँ बदल डालो
गुबार दिल में दबाने से फ़ायदा क्या है
सुकून गर न मिले आशियाँ बदल डालो
उदास गुल हैं जहाँ तितलियों नहीं जाती
तुम अपने प्यार से वो गुलसितां बदल डालो
जहाँ तलक न पहुँचती ज़िया न बादे सबा
तो फ़िर ये काम करो वो मकां बदल डालो
भरोसा है तुम्हें तीर-ए-नज़र पे तो जानाँ
अगर कमाँ है मुख़ालिफ़ कमाँ बदल डालो
अभी अभी तो हुआ है…
Added by rajesh kumari on May 10, 2018 at 6:28pm — 20 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
वो मेरी खामोशियों को हाँ म हाँ समझा किया
मुझको धरती और खुद को आसमाँ समझा किया
पहना जब तक सादगी और शर्म का मैंने लिबास
ये ज़माना यार मुझको नातवाँ समझा किया
उस कहानी के सभी किरदार उसको थे अज़ीज़
बस मेरे किरदार को ही रायगाँ समझा किया
जिस्म मेरा रूह मेरी जिस चमन पर थी निसार
वो फ़कत मुझको वहाँ का पासबाँ समझा किया
जिसकी दीवारों में माज़ी सांस लेता था कभी
यादों से भरपूर घर को वो…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 17, 2018 at 2:30pm — 18 Comments
2122 2122 2122 2122
इन बहारों में भी गुल ये हो गये हैं ज़र्द साहिब
चढ़ गई वहशत कि इनपर क्यूँ अभी से गर्द साहिब
जब जहाँ चाहा किसी ने सूँघ कर फिर फेंक डाला
पूछने वाला न कोई नातवाँ का दर्द साहिब
जो रफू कर दें किसी औरत के आँचल को नज़र से
अब कहाँ हैं ऐसी नजरें अब कहाँ वो मर्द साहिब
हो गये पत्थर के जैसे फ़र्क क्या पड़ता इन्हें कुछ
हो झुलसता दिन या कोई शब ठिठुरती सर्द साहिब
क्या बचा है मर्म इसमें क्या करोगे इसको…
Added by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:35pm — 14 Comments
221 2121 1221 212
गर बीज है जमीन में अंकुर भी आयेगा
,जागेगी ये अवाम तग़य्युर भी आयेगा
'ज़ह्नों में लाज़मी है तहय्युर भी आयेगा
बदलाव आयेगा तो तफ़क्कुर भी आयेगा
इंसानियत का आज कोई गीत गा रहा
,जब साज है नया तो नया सुर भी आयेगा
आना न मेरी जिन्दगी में तुम कभी सनम
,आए तो फुर्कतों का तसव्वुर भी आयेगा
'कमसिन रहे वो नाज़नीं यारो दुआ करो
आया अगर शबाब तकब्बुर भी आयेगा'
लिखदी ग़ज़ल समाज पे शाइर ने इक…
Added by rajesh kumari on February 6, 2018 at 5:30pm — 16 Comments
पर्वत जैसे दिन कटें ,रातें लगती भारी|
प्रीत रीति के खेल में ,ऐ साजन मैं हारी||
अधरों पर मुस्कान है,उर के भीतर ज्वाला|
पीनी पड़ती सब्र की ,भीतर भीतर हाला||
बिस्तर पर जैसे बिछी,द्वी धारी कुल्हारी|
प्रीत रीति के खेल में ,ऐ साजन मैं हारी||
सरहद से आई नहीं, अबतक कोई पाती|
जल जल आधी हो गई,इन नैनों की बाती||
चौखट पर बैठी रहूँ देखूँ बारी बारी|
प्रीत रीति के खेल में ,ऐ साजन मैं…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 29, 2018 at 8:51pm — 16 Comments
मखमल के गद्दों पे गिरगिट सोए हैं
कंठ चीर तरु सरकंडों के
अल्गोज़े की बीन बनी है
अंतड़ियों के बान पूरकर
तिलचट्टों ने खाट बुनी है
मजबूरी ने कोख में फ़ाके बोए हैं
लूट खसोट के दंगल भिड़तु
किसने लूटी किसकी जाई
बुक्का फाड़ देवियाँ रोती
सनी लहू में साँजी माई
कंधों पे संयम के मुर्दे ढोए हैं
छल के पैने नाखूनों से
देह खुरचते जात धरम की
मक्कारी की आरी लेकर
लाश बिछाते लाज शरम…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 21, 2018 at 10:08pm — 17 Comments
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