बड़े दिल का तो वो कद में बड़ा होने से पहले था
जमीं से राब्ता उसका ख़ुदा होने से पहले था
करें मत फ़िक्र अब मेरी सभी एहबाब घर जाएँ
मुझे एहसास-ए-तन्हाई नशा होने से पहले था
हुनर आया तपिश सहकर हजारों चोट खाकर ही
फ़कत माटी का लोंदा वो घड़ा होने से पहले था
बुरी सुहबत ने ही उसको मियाँ ऎसा बनाया है़
वगरना नेक बच्चा वो बुरा होने से पहले था
मुखौटे में निहाँ कितना घिनौना रूप था उसका
मसीहा वेश में ढोंगी सज़ा होने से पहले था
शिकस्ता हो गई कश्ती कहीं भी डूब जाएगी
मुझे इतना तो अंदेशा जुदा होने से पहले था
हुनर जब सामने आया तभी रुतबा हुआ क़ायम
फ़क़त इक नीम का पत्ता दवा होने से पहले था
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, मित्र राजेश कुमारी जी।
वाह शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीया
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी। बेहतरीन गज़ल।
मुखौटे में निहाँ कितना घिनौना रूप था उसका
मसीहा वेश में ढोंगी सज़ा होने से पहले था
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ओबीओ के तरही मिसरे पर बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
इस बार के तरही मुशायरे में आपकी कमी बहुत शिद्दत से महसूस की गई ।
आ. राजेश दी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।
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