तिनका तिनका जोड़ बनाया एक घरौंदा
दरवाजे पर आँधी आके ठहर गई
बर्बादी की धीमे-धीमे
आहट पाकर
स्वप्नकपोतों की
आँखों में भय के साये
सहमे सहमे भीरु
कातर बुनकर देखो
कोने में जा बैठे
दुबके सकुचाये
क्रूर काल के पंजों से
बचने की ख़ातिर
ग्रीवा मोड़े
कुछ पंखों में सिमट गये
सुनकर नींव की
सिसकी
सिहर सिहर कर मन में
कुछ पलकों की
दीवारों पर चिपट गये
भूख प्यास में
कितनी भोर दुपहर गई
दरवाज़े पर आँधी आके ठहर गई
उम्मीदों के गमलों
के कमसिन पौधों को
पतझड़ के
बुलडोजर आकर पीस गये
उधड़ी बखिया
खेतों की मेडो की जैसे
माटी के वो घाव
पुराने टीस गये
खुशियों की नन्हीं
प्यारी सी
भोली मुनिया
साँसे लेती ज़ल्दी ज़ल्दी
हांफ रही
देख मुखौटों के पीछे
आतंकी चेहरे
मूक खड़ी है़ भीतर
भीतर कांप रही
किश्ती के सपनों को
लील लहर गई
दरवाज़े पर आँधी आके ठहर गई \
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
" खुशियों की नन्हीं
प्यारी सी
भोली मुनिया
साँसे लेती ज़ल्दी ज़ल्दी
हांफ रही
देख मुखौटों के पीछे
आतंकी चेहरे
मूक खड़ी है़ भीतर
भीतर कांप रही "
बच्चियों के ऊपर इंसानी भेड़ियों के आतंक का भयावय और मार्मिक दृश्य बहुत थोड़े से शब्दों में : वाह ! वाह !! बहुत खूब !!!!
एक सार्थक नवगीत के सुन्दर सृजन के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीया rajesh kumari जी |
आद० समर कबीर भाई जी आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हो गया नवगीत पसंद करने पर बहुत बहुत आभार आपका
आद० सुशील सरना जी आपको नवगीत पसंद आया मेरा लेखन सार्थक हो गया बहुत बहुत आभारी हूँ
आद० बृजेश कुमार जी आपको नवगीत पसंद आया दिल से आभार आपका
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,अच्छा नवगीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
किश्ती के सपनों को
लील लहर गई
दरवाज़े पर आँधी आके ठहर गई \
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपने बहुत ही गहन भावों को समाहित करते हुए सुंदर और प्रवाहमयी नव गीत का सृजन किया है। हार्दिक बधाई।
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