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मेरी ज़मीन मेरा आसमाँ बदल डालो (ग़ज़ल 'राज')

१२१२  ११२२  १२१२  २२

तुम अपने दस्त-ए-हुनर से समां बदल डालो 
अगर पसंद नहीं है जहाँ बदल डालो 

गुबार दिल में दबाने से फ़ायदा क्या है 
सुकून गर  न मिले आशियाँ बदल डालो

उदास गुल हैं जहाँ तितलियों नहीं जाती 
तुम अपने प्यार से वो गुलसितां बदल डालो

जहाँ तलक न पहुँचती ज़िया न बादे सबा 
तो फ़िर ये काम करो वो मकां बदल डालो

भरोसा है तुम्हें तीर-ए-नज़र पे तो जानाँ  
अगर कमाँ है मुख़ालिफ़ कमाँ बदल डालो 

अभी अभी तो हुआ है जवाँ मेरा गुलशन 
ख़जां का रुख़ जो इधर हो ख़जां बदल डालो

मेरे वजूद से तुमको अगर महब्ब्त है 
मेरी ज़मीन मेरा आसमाँ बदल डालो
राजेश कुमारी ' राज '

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 9, 2018 at 12:43pm

बहुत बहुत शुक्रिया आद० नरेन्द्र सिंह जी 

Comment by narendrasinh chauhan on June 9, 2018 at 11:34am
खुब सुन्दर रचना

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 19, 2018 at 10:42pm

आद० आशुतोष जी आपका पुनः आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 19, 2018 at 10:41pm

बहुत बहुत शुक्रिया आद० समर भाई जी पोस्ट पर पुनः आकर आद० आशुतोष जी के संशय निवारण करने का आपने मुझसे बेहतर स्पष्ट किया .

Comment by Samar kabeer on May 15, 2018 at 3:14pm

'उदास गुल हैं जहाँ तितलियाँ नहीं जतीं'

'जहाँ तलक न पहुंचती ज़िया न बाद-ए-सबा'

'जहाँ' शब्द कई अर्थ रखता है,जैसे 'जिस जगह''जिस घड़ी','जिस मक़ाम,एक 'जहाँ' का अर्थ होता है दुनिया,जिस्रे जहान भी कहते हैं,यहाँ इन दो मिसरों में 'जहाँ' शब्द का इस्तेमाल किया गया है उसका आर्ट है,'जिस जगह(स्थान)तक।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 15, 2018 at 1:32pm

आदरणीया राजेश जी ..ह्रदय से आभारी हूँ आपका इस बिस्तृत तरीके से मेरी शंकाओं का निवारण करने के लिए / आपकी हर रचना मैं पढता हूँ और जब भी बात समझ में नहीं आये चाहे लघु कथा हो या ग़ज़ल मैंने आपसे निवेदन किया है और जब मुझे आपका बहुमूल्य समय मिला तो अपनी समझ को और पुख्ता करने अथवा समझ में और सूक्ष्मता बिकसित करने के लिए आपसे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए निवेदन कर लेता हूँ / भविष्य में भी शंकाओ के निवारण हेतु आपका मार्गदर्शन और समय मिलता रहेगा इस कामना और सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 15, 2018 at 12:54pm

आद० आशुतोष जी ग़ज़ल पर शिरकत तथा उसकी गहराई में जाकर की हुई समीक्षा के लिए बेहद शुक्रगुजार हूँ | आपके संशय को दूर करना एक लेखक के हिसाब से मेरा धर्म बनता है कई बार लेखक जिस भाव से लिख रहा है वहाँ तक पँहुचने में पाठक को कभी कभी वक्त भी लग जाता है .अब आपके संशय पर आती हूँ ...

१. उदास गुल हैं जहाँ तितलियों नहीं जाती 
तुम अपने प्यार से वो गुलसितां बदल डालो.....जहाँ से के प्रयोग पर यहाँ भी मैं दुबिधा में हूँ 

जहाँ का उत्तर सानी खुद दे रहा है --गुलसितां अर्थात जिस गुलसितां में गुल उदास हैं तितलियाँ नहीं जाती उसे मुहब्बत से बदल डालो (लिखते वक्त कश्मीर के हालात भी दिमाग में थे )

२ .जहाँ तलक न पहुँचती ज़िया न बादे सबा 
तो फ़िर ये काम करो वो मकां बदल डालो

अगर ऐसा न  हो तो फिर ऐसा हो .....लेकिन जहाँ के साथ तो फिर थोडा अटपटा लग रहा है मुझे 

यहाँ भी वही बात है  जहाँ तलक अर्थात उस मकाँ तलक ....वैसे इसमें ....अगर वहाँ न पँहुचती जिया न बादे सबा भी कर सकती हूँ 

तो शायद और जियादा स्पष्ट हो जाएगा 

अभी अभी तो हुआ है जवाँ मेरा गुलशन 
ख़जां का रुख़ जो इधर हो ख़जां बदल डालो...................खजां...को बदलें या उसके रुख को 

जिस खजां का रुख इधर है उस खज़ा को ही बदल डालो  अर्थात मौसम ही बदल डालो --ऐसा भाव लिया है 

बहुत बहुत शुक्रिया आपका इन महीन चीजों पर ध्यान दिया उम्मीद है मैं अपने भाव के अनुसार स्पष्ट कर  पाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2018 at 3:21pm

आदरणीया राजेश जी ..क्रांतिकारी अंदाज की ग़ज़ल लगी इस रचना  के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर ..आप की रचनाओं में गहन बात होती है संभवतः मैं समझ नहीं पा रहा हूँ एक दो शेर ..जैसे ()

उदास गुल हैं जहाँ तितलियों नहीं जाती 
तुम अपने प्यार से वो गुलसितां बदल डालो.....जहाँ से के प्रयोग पर यहाँ भी मैं दुबिधा में हूँ 

जहाँ तलक न पहुँचती ज़िया न बादे सबा 
तो फ़िर ये काम करो वो मकां बदल डालो

अगर ऐसा न  हो तो फिर ऐसा हो .....लेकिन जहाँ के साथ तो फिर थोडा अटपटा लग रहा है मुझे 

अभी अभी तो हुआ है जवाँ मेरा गुलशन 
ख़जां का रुख़ जो इधर हो ख़जां बदल डालो...................खजां...को बदलें या उसके रुख को 

मैं भली भाँती जानता हूँ और पिछली कई बार मैंने तथ्यों को न समझ पाने के कारण मैंने आपसे निवेदन किया था और आपने मेरी समस्याओं का निदान भी किया था उसी क्रम में अपने मन में उठे बिचार को आपसे साझा कर रहा हूँ अन्यथा मत लीजियेगा ...इस शेरो में मैं कुछ दुबिधा में हूँ और दुबिधा क्या है ठीक तरह से व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2018 at 9:35pm

आद० नीलेश भैया ग़ज़ल पर शिर्कत और दाद का बेहद शुक्रिया |

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2018 at 12:04pm

आ. राजेश दीदी,
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है ..
बधाई स्वीकार करें 
सादर 

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