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मुख़ालिफ़ होअगर मौसम तो कुछ अच्छा नहीं रहता
बदलते वक्त में कोई कभी अपना नहीं रहता
कोई इंसान रिश्तों के बिना जिंदा नहीं रहता
मुहब्बत के बिना पक्का कोई रिश्ता नहीं रहता
बुजुर्गों को दुखी करने से पहले सोच ये लेना
शज़र जब सूख जाता है कोई पत्ता नहीं रहता
जहाँ पर मुफलिसी बच्चों से बचपन छीन लेती है
किसी बच्चे के दिल में भी वहाँ बच्चा नहीं रहता
ज़रूरत ज़िस्म की जिनको मशीनों सा बना देती
हया का उनकी आँखों में कोई कतरा नहीं रहता
न छत पक्की न दीवारें महब्ब्त के घरौंदे की
ख़ुदा का शुक्र है उसमें ये दिल अपना नहीं रहता
जहाँ खुशियाँ बरसती हैं पनपते हैं वहीं सपने
जहाँ आँखें बरसती हैं वहाँ सपना नहीं रहता
मुझे थी जुस्तज़ू जिसकी हुआ अफ़सोस जब देखा
मेरे इस शह्र में भी अब कोई मुझसा नहीं रहता
-----मौलिक
Comment
आ. राजेश दी, सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आद० श्याम नारायण आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
आद० अनीता मौर्या जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई , सादर। |
वाह, बहुत खूब...
प्रिय कल्पना भट्ट जी आपका तहे दिल से शुक्रिया
मोहतरम जनाब तस्दीक जी आपकी दाद और इस्स्लाह का तहे दिल से स्वागत है मूल पोस्ट में सुधार कर चुकी हूँ इधर भी बाद में कर दूंगी
आपका दिल से बेहद शुक्रिया
आद० नरेन्द्र सिंह जी आपका तहे दिल से शुक्रिया
आद० राज लाली बटाला जी ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाज़ी का बेहद शुक्रिया
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने आदरणीया राजेश दी| हार्दिक बधाई|
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