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बहक गया अगर समां ख़ुदा न ख़्वास्ता
बिखर गया अगर जहाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
चिराग़ हम लिये खड़े यही तो सोचकर
भटक गया जो कारवाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उठाना मत सनम निकाब मुझको देखकर
मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता
पता चमन का तुम उसे न देना दोस्तों
इधर मुड़ी अगर खिजाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
किया क्या इंतज़ाम आग को बुझाने का
अगर उठा कहीं धुआँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उड़ी हुई मेरी है नींद इस ख़याल से
बढ़ी जो अपनी दूरियां ख़ुदा न ख़्वास्ता
मिलेगा ख़ास इक सुकूं मेरे रफ़ीक को
गिरे मेरा जो ये मकां ख़ुदा न ख़्वास्ता
राजेश कुमारी राज
Comment
आद० सतविन्द्र भैया आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हुआ दिल से शुक्रगुज़ार हूँ
आदरणीया राजेश दीदी, उम्दा गजल हुई है। हार्दिक बधाई
आद० विजय निकोर जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरी ग़ज़ल आपको पसंद आई .
इस प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
आद० नीलम जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ
आद० तेजवीर सिंह जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रिया आपका
आद० महेंद्र कुमार जी आपने सच कहा इस रदीफ़ ने बहुत पकाया बहुत बार लिख लिख कर मिसरे फाड़े तब जाकर बहुत मुश्किल से बन पाई क्यूंकि रदीफ़ के साथ न्याय होना बहुत जरूरी था .आपको पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया को सकता है कुछ वक्त के बाद बेहतर मतला दिमाग में आ जाए
आद० रक्षिता जी तहे दिल से शुक्रिया
आद० मोहम्मद आरिफ जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से शुक्रगुज़ार हूँ
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