मेघदूत गीत
नयनों के गमले सूख रहे
ऐ! मेघदूत कब आओगे
तकते तकते अम्बर घट को
चातक का मन टूट गया
ज्वाला जैसी तपती काया
बैरी सावन रूठ गया
अब किस विध इतनी पीर सहे
कब मेघा जल बरसाओगे
व्याकुल कजरा व्याकुल गजरा
व्याकुल कंगन ये बिंदिया
काँटों के बिस्तर पर तन है
चैन नहीं पावै निंदिया
साँसों साँसों में पीर दहे
कब सुख घट तुम छ्लकाओगे
साजन को तू जाकर देना
ये कुछ भीगे मोती हैं
मन की तुलसी तन की बेला
चुपके चुपके रोती हैं
वो समझेंगे बिन शब्द कहे
कब ये पाती ले जाओगे
ऐ मेघदूत कब आओगे
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० बसंत कुमार जी आपको गीत पसंद आया दिल से बहुत बहुत आभार आपका.
आदरणीय समर भाई जी सबसे पहले तो प्रतिउत्तर देने में देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ .आज कल वक़्त नहीं मिल रहा .आपको ये गीत पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ
आ0 राजेश कुमारी जी बहुत सुंदर रचना लिखी है आपने । हार्दिक बधाई ।
वाह आदरणीया बहुत ही सुन्दर और सरस विरह गीत हुआ है...
आदरणीया अर्पणा शर्मा जी, अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें ।
सुंदर गीत के लिए कोटिशः बधाई ... सादर |
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी।बेहतरीन गीत।
आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन मेघदूत गीत की रचना । बाक़ी आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब इशारा कर ही चुके हैन । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
वाह अनुपम गीत हुआ है आदरणीया , बहुत बहुत बधाई आपको
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत उम्दा 'मेघदूत गीत' रचा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बारिश तो पूरे देश में अच्छी हो रही है,फिर इस गीत में ये बेचैनी क्यों?
साजन को तू जाकर देना
इस पंक्ति में 'तू' को "तुम" करना उचित होगा ।
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