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जहाँ श्री राम की मूरत वहीं सीता बिठाते हैं
जपें जो नाम राधा का वहीं घनश्याम आते हैं
करें पूजन हवन जिनका करें हम वंदना जिनकी
वही दिल में हमारे ज्ञान का दीपक जलाते हैं
लिए विश्वास के लंगर चलें जो पोत के नाविक
समंदर के थपेड़ों से नही वो डगमगाते हैं
पराये देश में जाकर भले दौलत कमाएँ हम
हमारे देश के मौसम हमें वापस बुलाते हैं
भरे हम बैंक कितने भी मगर क्या बात गुल्लक की
वहीँ बचपन मिले सिक्के जहाँ भी खनखनाते हैं
विटप की छाँव में पलकर जहाँ सपने युवा होते
उसी को पंख आने पर परिंदे छोड़ जाते हैं
धुला सच्चे सलिल से जो भरी हो भावना निर्मल
उसी निःस्वार्थ अम्बर में सितारे जगमगाते हैं
करे जो बात अब झुकके उसे समझें निरा दुर्बल
बहुत हैं मूर्ख दुनिया में हँसी उसकी उड़ाते हैं
अँधेरे में जहाँ छुपकर कहीं संवेदना सोई
उठा अपने कलम लेखक उसे फिर से जगाते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० सुरेश कुमार कल्याण जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया |
प्रिय प्रतिभा जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत- बहुत आभार आपका |
अँधेरे में जहाँ छुपकर कहीं संवेदना सोई
उठा अपने कलम लेखक उसे फिर से जगाते हैं ...... प्रेरक भावों से भरी ग़ज़ल हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीया राजेश जी
आद० समर भाई जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपकी ग़ज़ल पर दाद मिली मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया आपका|
आद० महेंद्र कुमार जी, ग़ज़ल के सर्वप्रथम पाठक और दाद के लिए दिल से बहुत बहुत आभार | फिल्बदीह को तुरत फुरत भी कहें तो चलेगा अर्थात दी हुई बह्र पर कुछ मुक़र्रर वक़्त में ही पूरी ग़ज़ल कहनी होती है उस आयोजन को फिल्बदीह आयोजन कहते हैं |
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