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सारे शहर में उग गए मशरूम जमी पर

२२१२     १२१२    २२१    १२२ 

दम भूख से हैं तोड़ते मासूम जमीं पर 

पीकर शराब मस्ती में तू झूम जमी पर

 

बच्चे मनाते फुलझड़ी बिन रो के दिवाली 

पीकर तुझे लगे मची है धूम जमी पर 

अम्बार फरजी डिग्रियों के तूने लगाए 

लटका के अब गले में इन्हें घूम जमी पर 

दो बूँद अश्क जो गिरे आँखों से यूं तेरी 

सारे शहर में उग गए मशरूम जमी पर 

सड़कों पे गर पिया तो पोलिश का भी है पंगा 

बनवा ले झुरमुटों में ही कोई रूम जमी पर 

दिन ढलते शाम होते ही  अद्धा तू  गटक ले 

जन्नत है कैसी हो तुझे मालूम जमी पर 

मासूम लाडले तेरे भटकेंगे गली में 

हो वक़्त से पहले ही न मरहूम  जमी पर 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on December 5, 2013 at 12:23am

आदरणीय आशुतोष  जी , बहुत बढ़िया गज़ल है , आपको हार्दिक बधाई !!!!!!

Comment by coontee mukerji on December 4, 2013 at 10:25pm

दो बूँद अश्क जो गिरे आँखों से यूं तेरी 

सारे शहर में उग गए मशरूम जमी पर ...........बहुत खूब.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 4, 2013 at 6:18pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत बढ़िया गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई !!!!!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 4, 2013 at 5:17pm

आशीष जी ..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए मेरी तरफ से हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें ..सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 4, 2013 at 5:15pm

आदरणीय बागी सर ..मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का प्रतीक्षा रहती है आप समय समय पर अपनी टिप्पड़ियों के माध्यम से मुझे सजग बनाते हुए सोच की नूतन दिशा देते रहे है ..लेकिन आज आपकी उपस्थित तो दर्ज है पर कोई कमेन्ट नहीं है ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 4, 2013 at 5:12pm

आदरणीय गोपाल सर ...आपके स्नेहिल शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद ,,,सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 4, 2013 at 5:11pm

आदरणीय श्याम जी ...आपके मशविरे पर अमल का ध्यान रखूंगा ,,आपको मेरी रचना पसंद आयी यह मेरे लिए उत्साहवर्धक है 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 4, 2013 at 5:10pm

आदरणीय शिज्जू जी ...आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद ..saadar

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 4, 2013 at 4:05pm

मासूम लाडले तेरे भटकेंगे गली में 

हो वक़्त से पहले ही न मरहूम  जमी पर |

वाह वाह बहुत खूब आशुतोष जी !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 4, 2013 at 3:39pm

वाह वाह, क्या बात है, बहुत ही प्यारी ग़ज़ल कही है, आनंद आ गया, खास कर यह शेर ............

अम्बार फरजी डिग्रियों के तूने लगाए 

लटका के अब गले में इन्हें घूम जमी पर

बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें |

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