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रोज आदत जो तुमसे मिल ने की हो जायेगी
मौत की रात मेरी रूह भी रो जायेगी
आखिरी पल क़ज़ा जो सामने होगी मेरे
जिन्दगी इक हसीन ख्वाब में खो जायेगी
आज साकी बनी ग़ज़ल खडी है महफ़िल में
रिंद जब देंगे मशविरा सँवर वो जायेगी
हार उल्फत का देख मौत होगी शर्मिंदा
मौत खुद जिन्दगी ही हार में पो जायेगी
बात गुल से हसीं हो खार सी कड़वी चाहे
बीज जेहन मे ये ग़ज़ल के ही बो जायेगी
यूं ग़ज़ल लिखने की दीवानगी जो देखी तो
मौत की रात, रात खुद व खुद सो जायेगी
शायरों के कलाम की नदी होगी सागर
पर ग़ज़ल इसकी लाडली लहर हो जायेगी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रामशिरोमणि जी, अतेन्द्र जी, तपन जी ..आप सभी को मेरी रचना पसंद आयी ..मैं तहे दिल धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ सादर
सुन्दर गज़ल आदरणीय आशुतोष जी ! हार्दिक बधाई आपको
बधाई स्वीकारें आदरणीय डा.आशुतोष जी.......बहुत सुंदर गजल कही है
आदरणीय जीतेन्द्र जी ...बस यूं ही स्नेह बनाए रखें ..सादर
आखिरी पल क़ज़ा जो सामने होगी मेरे
जिन्दगी इक हसीन ख्वाब में खो जायेगी.......यह शेर बहुत पसंदीदा हुआ
बहुत सुंदर गजल , बधाई स्वीकारें आदरणीय डा.आशुतोष जी
आदरणीय गिरिराज भाई साब ..बस आपका स्नेह यूं ही सतत मिलता रहे ..सादर
आदरणीय आशुतोष भाई , सुन्दर गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई !!!!
आदरणीया मीना जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद
बहुत सुन्दर गज़ल |
बधाई आप को आदरणीय आशुतोष जी !
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