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रात को चाँद फिर आयेगा देखिये
आके दिल फिर जला जायेगा देखिये
हम रहेंगे खड़े रात भर छत पे ही
बादलों में वो छुप जायेगा देखिये
अपने दीवानों पे रोज ही इस तरह
चांद क्या क्या सितम ढायेगा देखिये
हम जिसे भूल पाए कभी हैं नहीं
किस तरह वो भुला पायेगा देखिये
रंग गिरगिट के जैसे बदलता है जो
कैसे वादे निभा पायेगा देखिये
चांदनी बन जमी पर उतरता रहा
खुद जमी पर वो कब आयेगा देखिये
फिर सितारों की बारात वो लायेगा
जलवे यूं रोज दिखलायेगा देखिये
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अंदाज़ में कही हुई मुसलसल ग़ज़ल है.
बधाई आदरणीय ..
इस सुन्दर गज़ल के लिए बधाई।
आदरणीया प्राची जी ..मेरी ग़ज़ल आपको पसंद आयी ..मैं शुक्रगुजार हूँ ...आपकी उत्साहवर्धक टिप्पड़ी के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
आदरणीय शिज्जू जी .. आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..बस आप सब का सहयोग यूं ही मिलता रहे ...सादर
आदरणीय वैद्यनाथ .जी उत्साहवर्धन के लिए तहे दिल शुक्रिया ..सादर
आदरणीया कुंती जी ...मेरी ग़ज़ल आपको पसंद आयी ..इससे निश्चित रूप से मेरा हौसला बढ़ा है ..आपका तहे दिल शुक्रिया ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय निलेश जी ..आपके मशविरे के लिए तहे दिल धन्यवाद ..रंग ही उपयुक्त होगा .. मैं इसमें परिवर्तन कर लूँगा ..बस यूं ही आप सभी का स्नेह सतत मिलता रहे इसी अभिलाषा के साथ ..सादर
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी
सभी अशआर बहुत पसंद आये
हार्दिक बधाई स्वीकार करें
///फिर सितारों की बारात वो लायेगा
जलवे यूं रोज दिखलायेगा देखिये /// बहुत बढ़िया आदरणीय डॉ आशुतोष सर ये शे'र बहुत अच्छा लगा
एक अच्छी ग़ज़ल हुई है ..मुबारक डॉक्टर साहेब
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