सीमित संसाधनों के साथ
महती भौतिकता वादी प्यास की तृप्ति
शायद प्रेरित करती है तुम्हे सतत
बेच देने के लिए अपना जमीर ......
शराब और शबाब में मस्त
अपने दांतों से खींचते हुए
रोस्टेड चिकेन की टाँगे
भूलते रहे हो तुम अपने शक्ति और अधिकार ...
फिर समाज में रुतवा कायम करने की;
एक अच्छा पिता और पति कहलाने की ;
तुम्हारी ख्वाइश ने भी जी भर हवा दी है
अधिक से अधिक धनोपार्जन की तुम्हारी प्यास को
जायज या नाजायज
किसी भी तरीके से , कैसे भी ...
अपने और अपनों के अनंत सुखों की चाह में
नोटों से भरे लिफाफों के बदले
तुमने जीभर सौदा किया है
अपनी माँ का ; अपनी मातृभूमि का ….
लेकिन न जाने क्यूँ मुझे
आज भी लगता है की
अनंत गुना कम हैं तुम्हारे सुख उस सुख से
जो मिलता है
सूखी रोटी खाने में;
घास के बिछोने पे सोने में;
उसे और सिर्फ उसे ....
जिसने कभी नहीं भुलाए हैं अपने शक्ति और अधिकार
बेचा नहीं है मातृभूमि को
सौदा नहीं किया कभी अपने जमीर का
Comment
प्रयासरत रहें आदरनीय .. सादर
सुन्दर भावाभिव्यक्ति आदरणीय आशुतोष जी। । हार्दिक बधाई आपको
जो मिलता है
सूखी रोटी खाने में;
घास के बिछोने पे सोने में;
उसे और सिर्फ उसे ....
जिसने कभी नहीं भुलाए हैं अपने शक्ति और अधिकार
बेचा नहीं है मातृभूमि को
सौदा नहीं किया कभी अपने जमीर का ------------ आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत सही बात कही है , आपको हार्दिक बधाई ॥
अच्छी भावाव्यक्ति है आदरणीय डॉ आशुतोष सर बधाई आपको
जो मिलता है
सूखी रोटी खाने में;
घास के बिछोने पे सोने में;
उसे और सिर्फ उसे ....
जिसने कभी नहीं भुलाए हैं अपने शक्ति और अधिकार
बेचा नहीं है मातृभूमि को
सौदा नहीं किया कभी अपने जमीर का ...........अति सुंदर.
आशुतोष जी /मित्रवर
बड़ा ही भावपूर्ण है आपका कथ्य
आत्मभिमान और आत्मगौरव के साथ
सूखी रोटी का स्वाद i राना प्रताप जी याद् आ गए i
जायज या नाजायज
किसी भी तरीके से , कैसे भी ...
अपने और अपनों के अनंत सुखों की चाह में
नोटों से भरे लिफाफों के बदले
तुमने जीभर सौदा किया है.............सुन्दर
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