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छलकती आँखें हैं साकी हसीं इक जाम हो जाये

१२२२   १२२२   १२२२    १२२२

छलकती आँखें हैं साकी हसीं इक जाम हो जाये

बना दो रिंद दुनिया को सुहानी शाम हो जाये

 

जुदा मजहब के लोगों को मिला दे आज ऐ साकी

तरीका कोई भी हो आज दिलकश काम हो जाये

 

हमें हिन्दू मुसल्मा कह लड़ाते हैं भिड़ाते हैं

करो कोई जतन ऐसा की हिंदी नाम हो जाये

 

हजारों फूल गुलशन में जुदा हैं रूप रंगत भी

मगर खुशबू जुदा मिलकर हसीं पैगाम हो जाये

 

न जाने किसकी साजिश है बहाते हम लहू अपना

करो मिलकर दुआ साजिश सभी नाकाम हो जाये

 

हमारे बंधू बांधव ही बने हिन्दू बने मुस्लिम

मुखौटों में तो कोई भी यूं ही गुमनाम हो जाये

 

वो आयें शौक से मंदिर करें मस्जिद में हम सजदा

हो काशी उनका औ काबा हमारा धाम हो जाये

 

मिलो बकरीद में सबसे मनाओ साथ दीवाली

मिलो ऐसे की घर अहबाब के कुहराम हो जाये

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 6:04pm

//अति उत्साही होने पर आपकी कबीराना फटकार मुझे मिलती रहे .//

सादर आदरणीय.. :-))))

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 27, 2013 at 4:43pm

आदरणीय सौरभ सर ..आपके शब्द कभी मुझे उर्जा से लवरेज कर देते हैं..कभी चिंतन के लिए प्रेरित करते हैं ..आपका मार्गदर्शन मेरे लिए हमेशा अमूल्य रहा है ..भविष्य में भी आपका स्नेह और अति उत्साही होने पर आपकी कबीराना फटकार मुझे मिलती रहे ..बस इसी ख्वाइश के साथ ..सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 8:50pm

वाह .. गंग-जमुनी संस्कार को शब्द देने के लिए हार्दिक बधाई और ढेरों दाद !
शुभेच्छाएँ

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 12:19pm

वाह वाह आदरणीय आशुतोष जी बेहतरीन ग़ज़ल शानदार अशआर बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 21, 2013 at 7:08pm

बहुत बहुत खूबसूरत गजल। बधाई माननीय। सादर नमन।

Comment by shashi purwar on December 21, 2013 at 6:38pm

waah bahut khoob

हमें हिन्दू मुसल्मा कह लड़ाते हैं भिड़ाते हैं

करो कोई जतन ऐसा की हिंदी नाम हो जाये.. sundar gajal hai mananiye badhai aapko

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 21, 2013 at 11:27am
आदरणीया कल्पना जी, आदरणीय केतन जी , आदरणीय लक्ष्मणजी , आदरणीया वंदना जी, आदरणीय निलेश जी, आदरणीय गिरिराज भाईसाब , आदरणीया राजेश जी ....आप सभी का सतत प्रोत्साहन मुझे कुछ न कुछ नूतन लिखने की प्रेरणा देता है ..आप सभी का स्नेह यूं ही मिलता रहे इसी अभिलाषा के साथ ..सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 21, 2013 at 11:23am
आदरणीया मीना जी,आदरणीय केवल जी मेरी रचना आपको पसंद आयी इसके लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 21, 2013 at 11:22am
आदरणीय शिज्जू जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 21, 2013 at 9:06am

बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीय आशुतोष जी बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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